कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

आखिर उन्होंने हार मान ली और उसे अपनी नियति मान कर वे कोर्ट केसों में लग गए. पल्लवी और उस के परिवार ने उन पर झूठे सबूतों के सहारे चोरी, मारपीट और अपहरण के 6 मुकदमे दर्ज करा दिए. पल्लवी और उस के परिवार वालों ने उन्हें अपनी बेटी श्रेया से मिलने और बात करने से भी मना कर दिया. उन्हें उम्मीद थी कि बेटी के मोह में वे जरूर टूट जाएंगे और उन की शर्तें मान लेंगे. खैर, शुरू में अंतहीन से लगने वाले इस सिलसिले से उन्हें अपनी सचाई के बल पर जल्दी ही मुक्ति मिल गई पर इस में उन की जिंदगी के बेहतरीन 8 साल गुजर गए. पल्लवी ने अपने परिवार के कहने पर महिला कानूनों की आड़ में उन का मकान एवं रुपयापैसा आदि सब ले लिया.

एक बार कोर्ट केसों से मुक्त होने के बाद वे अपने पैतृक शहर रतलाम चले आए और अपनी जिंदगी के बिखरे हुए धागों को समेटने में लग गए. यहीं एक छोटा सा व्यवसाय शुरू कर लिया और अपनी बहनों के साथ जिंदगी के दिन गुजारने लगे. इस बीच, कभीकभी वे अपनी बेटी श्रेया को जरूर मिस करते पर फिर उन्होंने आदत डाल ली. कभीकभी उन्हें पल्लवी पर काफी गुस्सा भी आता कि उस ने अपने स्वार्थ के चक्कर में उन की और श्रेया की जिंदगी खराब कर दी. फिर भी उन्हें लगता था कि श्रेया की भलाई के लिए उसे तब तक पल्लवी की सचाई के बारे में कुछ न बताया जाए जब तक कि वह इन सब बातों को समझने लायक न हो जाए. सो, उन्होंने इस बारे में चुप्पी ही साधे रखी और श्रेया के बड़ी होने के बाद कभी इस बारे में बात करने का मौका ही नहीं मिला.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...