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श्रेया के 3 साल की हो जाने के बाद वे किसी अच्छे स्कूल में उस के दाखिले की तैयारी कर रहे थे. कई अलगअलग स्कूलों के बारे में जानकारी लेने के बाद उन्होंने 3 स्कूलों में उस के ऐडमिशन का फौर्म भर दिया. शुरुआती औपचारिकताओं व इंटरव्यू के दौर के बाद रिजल्ट की बारी आई और उन की तमाम मेहनत के फलस्वरूप श्रेया को 2 अच्छे स्कूलों में ऐडमिशन के लिए चुन लिया गया. प्राइवेट स्कूलों की फीस के स्तर को देखते हुए वे उस के ऐडमिशन के लिए पैसों व अन्य इंतजाम में लग गए.

अभी यह जद्दोजहद चल ही रही थी कि एक दिन बाथरूम में फिसल जाने से उन की मां को स्लिप डिस्क की तकलीफ हो गई. उन्हें उन के इलाज की खातिर रतलाम जाना पड़ा और जो पैसा उन्होंने श्रेया के ऐडमिशन के लिए इकट्ठा किया था, उस में से कुछ उन की मां के इलाज पर खर्च हो गया. पल्लवी को यह बात बहुत ही नागवार गुजरी. पल्लवी ने एक दिन उन से कहा कि उस का भाई वाटर फिल्टर प्लांट की एजेंसी लेने के लिए प्लान कर रहा है और जो पैसा उन के पास है, उसे वे उस के भाई को दे दें जिस से कि वह अपना बिजनैस शुरू कर सके. उन के इस तर्क पर कि वह पैसा श्रेया के ऐडमिशन के लिए है, पल्लवी ने कहा कि श्रेया को वे किसी चैरिटी या मिशनरीज स्कूल में डाल दें. पल्लवी के इस सुझाव पर वे अफसोस जताने के अलावा कुछ नहीं कर सके, यहां तक कि गुस्सा भी नहीं कि एक मां हो कर भी उसे अपनी बच्ची के भविष्य के बजाय अपने आवारा भाइयों की चिंता ज्यादा सता रही थी. उन्होंने ऐसा करने के लिए पल्लवी को स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया.

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