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हमारे उन के कुल की कोई बराबरी ही नहीं है. वैसे भी बेटी अपने से ऊंचे कुल में दी जाती है, जबकि उन का कुल हम से निम्न श्रेणी का है.’’ तृषा भी बड़ी नकचढ़ी बेटी थी. पिता के असीमित प्यारदुलार ने उसे जिद्दी भी बना दिया था. अत: तपाक से बोली, ‘‘मैं ने जाति विशेष से प्यार नहीं किया है पापा, इंसान से किया है और मलय किसी भी ऊंची जाति से कहीं ज्यादा ही ऊंचा है, क्योंकि वह एक अच्छा इंसान है, जिस से प्यार कर के मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है.’’

मनोजजी को इस का गुमान तक न था कि उन की दुलारी बेटी उन के विरोध में इस तरह खड़ी हो जाएगी. उन्हें अपने ऊंचे कुल का बड़ा घमंड था. उन के पुरखे अपने समय के बहुत बड़े ताल्लुकेदार थे. यद्यपि अब ताल्लुकेदारी नहीं रह गई थी, फिर भी वह कहते हैं न कि मरा हाथी तो 9 लाख का... मनोजजी के संदर्भ में यह कहावत पूरी तरह लागू होती थी. अपने शहर के नामीगिरामी वकील थे. लक्ष्मी ने जैसे उन का वरण ही कर रखा था. तृषा अपने पिता की इकलौती लाडली बेटी थी. अपने बड़े भाई तनय की भी बड़ी ही दुलारी थी. तनय भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित हो कर, अवर सचिव के पद पर आसाम में तैनात था.

मनोजजी को अपने कुल तथा अपने बच्चों पर बड़ा अभिमान था. वह सोच भी नहीं सकते थे कि उन की बेटी इस प्रकार उन्हें झटका दे सकती है. उन के अनुसार, मलय के परिवार की उन के परिवार से कोई बराबरी नहीं है. उस के पिता अनिल कृषि विभाग में द्वितीय श्रेणी के अधिकारी थे, उन का रहनसहन भी अच्छा था. पढ़ालिखा परिवार था. दोनों परिवारों में मेलमिलाप भी था. मलय भी अच्छे संस्कारों वाला युवक था, किंतु उन के मध्य जातिपांति की जो दीवारें थीं, उन्हें तोड़ना इतना आसान नहीं था. तब अपनी बेटी का विवाह किस प्रकार अपने से निम्न कुल में कर देते.

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