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"मंगनी पार के खेतों में भैंसों के लिए चारा उगाया जा सकता है. वहीं एक आदमी भैंसों को चारा भी लाया करेगा और आते समय उन के लिए घास भी ले आया करेगा. कुछ दिनों में ट्रैक्टर आ जाएगा. उस को रखने की जगह चाहिए होगी. कार भी वहीं रखी जाएगी."

"साहबजी, यह आप ने ठीक सोचा है. अभी माघ का पशुमेला लगने वाला है. वहां से अच्छी भैंसें मिल जाएंगी. काम कब से शुरू करवाएं जी?""बस, जितनी जल्दी हो सके.’’"ठीक है, साहबजी मैं सारे प्रबंध करता हूं."

लंच के बाद शन्नो भी खेतों को देखने के लिए तैयार हो गई. घर से हम पैदल ही निकले. खेतों तक कार नहीं जा सकती थी. रास्ते में कई लोग मिले. चौधरी बिशन भी मिला. पट्टी वाले खेत के बीच बहती कूल के दूसरी तरफ चौधरी बिसन के खेत थे. अकेला 40 किल्ले का मालिक है. इस की मां अभीअभी कुएं में डूब कर मरी थी. कोई उस के आगे बोल नहीं सकता था. जो बोलता था, उसे वह रगड़ कर रख देती थी. हमेशा अभिमान से भरी रहती थी.

वह अपनी सास को बहुत तंग किया करती थी. मधुमेह के कारण सास के पांव में जख्म थे. कहते हैं, वह उस के जख्मों पर सोटी मारा करती थी.सास उसे कहतीं कि जिस तरह तुम मेरे जख्मों पर सोटी से मारती हो, उसी तरह तुम्हारी बहू भी तुम्हें मारा करेगी।

विडंबना देखें, बिशन की मां के साथ भी वैसा ही हुआ जैसे उस ने अपनी सास के साथ किया था. कुदरत का यही नियम है. समय कितनी जल्दी बदल जाता है, पता ही नहीं चलता. समय कभी किसी के साथ एकसा नहीं होता, कभी किसी के साथ तो कभी किसी के साथ.

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