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अब जब ताऊजी उस की शादी की कोशिश करने लगे हैं और ताईजी भी उस से उस के मनपसंद लड़के के बारे में पूछ रही हैं तो उस के लिए प्यार की मीठीमीठी घंटियां बजने लगीं. शशांक जैसा जीवनसाथी ही तो उसे अपने लिए चाहिए पर उस ने तो इन दिनों उस से इस संबंध में कोई बात ही नहीं की. उस का मन तरंगित हो उठा...

मगर क्षण भर में ही उसे अपने सपने टूटते से लगे, क्योंकि शशांक एसटी कोटे से था. पापा और ताऊजी दोनों को ही अपने ब्राह्मणत्व का बड़ा गुमान था. इस विषय को ले कर वे पक्के रूढि़वादी थे. कई दिनों तक वह अनिर्णय की स्थिति में रही.

अब वह करे तो क्या करे? मांपापा की आंखों में तैरती खुशियों की चमक, ममतामयी ताईजी का पलपल प्यार से गले लगा कर कहना कि मेरी लाडो को दुनियाजहां की सारी खुशियां मिलें. परंतु ताऊजी उसे संदिग्ध लगते थे. वे फोन पर फुसफुसाते हुए न जाने किस गुणाभाग में लगे रहते थे.

पूर्वा को दूरदूर तक कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. वह ताऊजी की फुसफुसाहटों पर अपने कान लगाए रहती. उसे पूरा विश्वास था कि ताऊजी उस की शादी फिक्स करवाने के एवज में अवश्य कोई लंबा हाथ मार रहे होंगे. वह चुपके से उन के कागज टटोलती, उन का फोन चैक करती कि कोई एसएमएस उसे पढ़ने को मिल जाए, परंतु वह अपने शक को सच में परिवर्तित करने में सफल नहीं हो पा रही थी.

पूर्वा को ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे किसी दलदल में धंसती जा रही है जहां से निकलना कठिन है. वह इसी उलझन में थी. तभी उसे ऐसा अनुभव हुआ कि शशांक ने उस की हथेलियों को पकड़ लिया है और उसे दलदल से बाहर निकाल लिया है. वह उस के साथ भागती जा रही है.

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