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फिर दोनों अपने कमरे में चले गए. पड़ोस में लड़के की शादी थी. संबंध अच्छे थे, इसलिए सपरिवार बुलाया था. सभी तैयार हो गए. हम बड़ी भाभी का इंतजार कर रहे थे. मां ने मुझे उन्हें बुलाने के लिए भेजा.

मैं ने बाहर से ही आवाज दी, ‘‘भाभी, जल्दी चलिए.’’

‘‘बीनू, अंदर आ जा,’’ भाभी बोलीं.

अंदर वे तैयार खड़ी कुछ ढूंढ़ रही थीं. बोलीं, ‘‘पता नहीं, लौकर की चाबी कहां रख दी है. नैकलैस के बिना कैसे चलूं. इतना ढूंढ़ा पर मिल ही नहीं रहा. तेरे भैया भी ढूंढ़ कर थक गए. अभी उन्हें नहाने भेजा है.’’

भैया ने स्नानघर से ही कहा, ‘‘क्यों परेशान हो रही हो. मां से मांग लो, आ कर वापस कर देना. मैं थोड़ी देर में आता हूं.’’

पर मां से जेवर निकलवाना इतना आसान नहीं था. उन का एक ही जवाब होता था, ‘तुम लोगों को पहनने का ढंग है नहीं, कहीं तोड़ दिया या खो दिया तो? ना बाबा, मैं तो नहीं देती, ये सब बीनू के लिए हैं. तुम लोगों से तो कुछ होगा नहीं, कम से कम मेरे गहने तो रहने दो.’

भाभी को जैसे कुछ याद आया. उन्होंने प्यार से पास आ कर मेरे माथे पर हाथ फेरा. जी धक से हो गया कि अब क्या होने वाला है. वे बोलीं, ‘‘बीनू, जन्मदिन पर जो नैकलैस पिताजी ने तुम्हें दिया था, उसे एक रात के लिए दे दो.’’

‘‘पर भाभी, मैं कैसे...’’

‘‘अरे, कुछ नहीं होगा. मैं मां से नहीं कहूंगी. उन्हें पता ही नहीं चलेगा. मैं वहां से आ कर तुरंत दे दूंगी.’’

मरती क्या न करती, बिना परिणाम सोचे मैं ने नैकलैस उन्हें दे दिया.

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