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उमेश उस के न कहने पर भी उस के मन की बात समझते हुए बोले थे, ‘सुमी, नन्हे की परवरिश सिर्फ तुम्हारा ही नहीं मेरा भी दायित्व है. नन्हे हम से अलग रह कर भी अपनी राह खुद स्वयं ढूंढ़ लेगा, क्योंकि उसे पता है कि हम उस के मातापिता नहीं हैं जबकि अनिरुद्ध इस को एक सजा समझ कर हम से नफरत कर और विद्रोही होता जाएगा. होस्टल में रख कर नन्हे को हो सकता है हम और ज्यादा प्यार और सुरक्षा प्रदान कर सकें और फिर प्रत्येक छुट्टियों में उसे ले आया करेंगे तथा बीचबीच में मिल कर उस का हालचाल लेते रहेंगे.’

उमेश का अनुमान ठीक ही निकला. होस्टल में नन्हे अपने हमउम्र साथियों के साथ रह कर सामान्य होने लगा था तथा अनिरुद्ध के व्यवहार की गरमी भी शांत होने लगी थी.

छुट्टियों में अवश्य थोड़ी समस्या होती लेकिन उन्हें स्मिता अपनी व्यवहारकुशलता से संभाल लेती. अनिरुद्ध को भी लगता, थोड़े दिनों की बात है. इसलिए सहयोग कर लेता था. पढ़ने में दोनों ही तीक्ष्ण बुद्धि वाले थे, बस, इतना ही संतोष था.

समय बहता गया, समय के साथसाथ बीते दिनों की यादें भी धुंधली पड़ने लगी थीं. अनिरुद्ध इंजीनियर बना तथा नन्हे डाक्टर. दोनों ही अपनेअपने क्षेत्रों में सफल रहे थे.

अनिरुद्ध ने अपनी पसंद की ही एक लड़की से विवाह कर लिया. उस की पत्नी अरुणिमा जिद्दी स्वभाव की अमीर मातापिता की अकेली संतान थी. वे स्वतंत्र रहना चाहती थी. इसलिए जराजरा सी बात को कलह का कारण बना देती थी. घर का वातावरण विषाक्त होने लगा था इसलिए उन्होंने अलग रहने का निर्णय कर लिया था. एक बार उन्हें भी लगा था कि शायद थोड़ी सी दूरी संबंधों को सामान्य बना सके किंतु उन का यह सोचना भी ठीक नहीं निकला, अलग रहने से वह अपने कर्तव्यों के प्रति और भी उदासीन होते गए. पहले कभी तीजत्योहार पर आ भी जाते थे, पर धीरेधीरे वे भी बंद होता गया. अब तो बस, फोन पर ही जब उस का मन होता है, बात कर मन को सांत्वना दे लेती है.

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