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उमेश ने अपनी बहन के अनाथ लड़के नन्हे को अपने पास रख तो लिया लेकिन उन के बेटे अनिरुद्ध को यह खलने लगा कि नन्हे को उस के हिस्से का प्यार मिल रहा है. हालांकि स्मिता की सूझबूझ ने दोनों की परवरिश में कमी नहीं आने दी, फिर भी नन्हे के प्रति अनिरुद्ध का व्यवहार नहीं बदला. क्या नन्हे कभी अनिरुद्ध का दिल जीत पाया?

स्मिता का आज बिस्तर से उठने का मन नहीं कर रहा था. पता नहीं क्यों रातभर सोने के बाद भी सिर में भयंकर पीड़ा हो रही थी. सिल्की कभी उस के पैरों के पास से चादर खींच कर उसे उठाने का प्रयास करती तो कभी उस के सामने बैठ कर उसे एकटक देखती. उस का बाहर जाने का समय हो गया था, इसलिए उसे बेचैनी हो रही थी.

उसे आज भी याद है कि उस का बेटा अनिरुद्ध अपने मित्रों की देखादेखी कुत्ता पालने के लिए कहता तो वह यह कह कर झिड़क देती थी कि मुझ से तुम्हीं लोगों का काम नहीं हो पाता, उस बेजबान जानवर की देखभाल कौन करेगा. वैसे भी उसे पशुपक्षियों को कैद कर के रखना पसंद नहीं था, जब तक कि वह उन की देखभाल के बारे में पूरी तरह से आश्वस्त न हो.

आज जब वह दूर जा चुका है तो इस पामेरियन कुत्ते को अपना अकेलापन दूर करने के लिए पालना पड़ा. अकेले रहने पर एक बार एक अनाथ बच्चे की परवरिश का सुझाव भी अनिरुद्ध के पिता उमेशकांत ने दिया था किंतु आज के बदलते परिवेश में जब अपने ही साथ छोड़ देते हैं तो दूसरों से क्या आशा, क्या आकांक्षा. आएदिन अखबार में बूढ़ों की हत्या कर लूटपाट किए जाने की घटनाएं भी उसे आतंकित करने लगी थीं, तब उसे लगा था कि अब इंसान पर भरोसा करने के बजाय जानवर पर भरोसा करना ज्यादा ठीक है, कम से कम जानवर पीछे से तो वार नहीं करता.

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