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पवन ने एक इतवार ऐनी को बाहर लंच पर बुलाया और बाद में कौफी के लिए घर ले आया. अपार्टमैंट में चीजें बिखरी पड़ी थीं, अकेला रहता था, कौन देखने आने वाला है. इंडिया में घर को ठीकठाक रखना तो नौकर का काम होता था. अब यह कौफी का नया दौर चला तो हर शनिवार वह घर व रसोई ठीक कर लेता.

3 बार के बाद ऐनी ने कहा कि अगली बार लंच वह बना कर लाएगी. चीज से बने पकवान और रोस्टेड चिकन दोनों ने भरपूर आनंद ले खाया. टीवी पर मूवी देखी. शाम की कौफी बाहर गैलरी में बैठ पी. ठंडी हवा का आनंद लिया और अब रात घिर आई थी. न तो ऐनी का घर जाने का मन था और न ही पवन उसे जाने देना चाहता था. एक ही बार रुकने को कहा तो ऐनी ने दोनों हाथों से उस का चेहरा पकड़, आंखों में झांकते कहा, ‘ठीक है’. पवन को जैसे आंखों ही आंखों में ऐनी की इजाजत मिल गई.

हमेशा की तरह मां अपने बेटे से बात कर उस की खबर लेती रहती. पर इस बार सामने पड़ा फोन बजता रहा, पवन ने नहीं उठाया. वह मां को नई खबर नहीं देना चाहता था.

अगले हफ्ते ऐनी अपना सामान ला पवन के साथ रहने आ गई. अंधा क्या मांगे, दो आंखें. बिखरा सामान ठिकाने लग गया. सुबह का नाश्ता दोनों इकट्ठे बैठ कर खाते. शनिवार पब जाने और बाहर खाना खा कर आने का रूटीन बन गया. इतवार घर में रह मस्ती होती और अब पवन ने भी कुछकुछ पकाना सीख लिया था. शाम की कौफी बनाना अब उस की जिम्मेदारी थी.

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