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एकबारगी मैं असमंजस की स्थिति में आ गई. बच्चे को गोद में लेती हुई यह पूछने से अपनेआप को न रोक पाई कि मां, यह भाई कहां से आया? मां दुविधा में पड़ गईं. वे भरसक जवाब देने से बचती रहीं. बच्चे को भाई के रूप में पा कर कुछ क्षण के लिए मैं सबकुछ भूल गई. मगर इस का मतलब यह नहीं था कि मेरे मन में सवालों की कड़ी खत्म हो गई. रात में ठीक से नींद नहीं आई. करवटें बदलते कभी मां तो कभी बच्चे पर ध्यान चला जाता. तभी नानी और मां की खुसुरफुसुर मेरे कानों में पड़ी.

‘कैसा चल रहा है? पहले से दुबली हो गई हो,’ नानी पूछ रही थीं.

‘बच्चे के आने के बाद थोड़ी परेशान हूं. ठीक हो जाएगा.’

मां बोलीं, ‘दामादजी खुश हैं?’

‘बहुत खुश हैं. खासतौर से लड़के के आने के बाद.’

‘मैं तो डर रही थी कि 2-2 बेटियों का कलंक कहीं वहां भी तेरा पीछा न करे,’ नानी बोलीं.

‘मां, भयभीत तो मैं भी थी. शुक्र है कि मैं वहां बेटियों के कलंक से बच गई. यहां दोनों कैसी हैं?’

‘ठीक हैं. शुरुआत में थोड़ा परेशान जरूर करती थीं मगर अब नहीं. दोनों को घर के छोटेमोटे कामों में उलझाए रहती हूं ताकि भूली रहें.’

‘मां, अब दोनों की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है. मैं अब शायद ही अपनी नई गृहस्थी से उबर पाऊं. वैसे भी लड़के के आ जाने के बाद दोनों के प्रति मोह भी कम हो गया है.’

‘ऐसा नहीं कहते,’ नानी ने टोका.

‘क्यों न कहूं? बाप नालायक. इन दोनों के बोझ से मुक्त होना क्या आसान होगा?’

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