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पति का प्रस्ताव सुनते ही प्रथा के सीने में जलन होने लगी.
“भावेश तुम भी... जिस ने गलती की उसी का पक्ष ले रहे हो? एक तो तुम्हारी उस नकचढ़ी बहन ने मेरी इतनी कीमती साड़ी का सत्यानाश कर दिया ऊपर से तुम चाहते हो कि मैं नाराजगी जाहिर करने का अपना अधिकार भी खो दूं? गिर जाऊं उस के पैरों में? नहीं, मुझ से यह नहीं होगा. किसी सूरत नहीं,” प्रथा फुंफकारी.

“एक साड़ी ही तो थी न, जाने दो. मैं वैसी 5 नई ला दूंगा. तुम प्लीज उस से माफ़ी मांग लो,” भावेश ने फिर खुशामद की लेकिन प्रथा ने कोई जवाब नहीं दिया और पीठ फेर कर सो गई.

भावेश ने उसे मजबूत बांहों से पकड़ कर जबरदस्ती अपनी तरफ फेरा. प्रथा को उस की यह हरकत बहुत ही नागवार लगी.
“एक थप्पड़ ही तो मारा था न... वह भी उस की गलती पर. यदि वह तुम्हारी बहन न हो कर मेरी बहन होती तब भी क्या ऐसा ही बवाल मचता? बात आईगई हो जाती. तुम बहनभाई कभी आपस में लड़े नहीं क्या? क्या तुम ने या तुम्हारे मांपापा ने आजतक कभी उस पर हाथ नहीं उठाया? फिर आज यह महाभारत क्यों छिड़ गई?” प्रथा ने उसका हाथ झटकते हुए कहा.
भावेश ने बात आगे न बढ़ाना ही उचित समझा.

उस रात शायद घर का कोई भी सदस्य नहीं सोया होगा. सब अपनेअपने मन को मथ रहे थे. विचारों की झड़ी लगी थी. रजनी अपनी मां के आंचल को भिगो रही थी तो प्रथा तकिए को.

सुबह प्रथा ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए सब को चाय थमाई लेकिन आज इस चाय में किसी को कोई मिठास महसूस नहीं हुई. रजनी और सास ने तो कप को छुआ तक नहीं. बस, घूरती ही रही. हरकोई बातचीत शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहा था.

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