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कामिनी अलग कमरे में बंद रही आती तो भवानी प्रसाद संकोच में बहू से ज्यादा बातें नहीं करते. मयंक पहले की तरह ऑफिस चला जाता और देवर यानी विक्रांत और ननद दीक्षा का अधिकांश समय कॉलेज में बीतता. समीक्षा समझ नहीं पाती कि वह घर के हालातों को नार्मल कैसे बनाए. उसे पता था कि सास उसे पसंद नहीं करती. फिर भी वह अपनी तरफ से सासससुर का पूरा ख़याल रखती और उन का दिल जीतने का पूरा प्रयास करती.

धीरेधीरे भवानी प्रसाद समीक्षा के बातव्यवहार से काफी प्रभावित रहने लगे. कामिनी जी की नाराजगी भी कम होने लगी थी. मगर उन का मुंह इस बात पर अब भी फूला हुआ था कि बेटे की शादी भी हो गई और घर में कोई रौनक भी नहीं हुई. सब कुछ सूनासूना सा रह गया.

इस का समाधान भी भवानी प्रसाद ने निकाल लिया, "कामिनी क्यों न हम अपने बेटे का रिसेप्शन धूमधाम से करें. उस में सारे रिश्तेदार भी आ जाएंगे और घर में रौनक भी हो जाएगी."

कामिनी जी ने यह बात स्वीकार कर ली.सही मौका देख कर रिसेप्शन का आयोजन किया गया. कामिनी ने इस में अपनी सारी अधूरी तमन्नाऐं पूरी कीं. खानपान और सजावट का शानदार प्रबंध किया गया. नए कपड़े, गहने और रिश्तेदारों की जमघट के बीच वह पुराने दर्द भूल गईं. कई दिनों तक मेहमानों का आनाजाना लगा रहा. हंसीठहाकों की मजलिस के बीच घर में एक नए माहौल की शुरुआत हुई.

भवानी प्रसाद को लगने लगा कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा. उन की तरह कामिनी भी समीक्षा को दिल से स्वीकार कर लेगी. समीक्षा के घर वालों से मेलजोल बढ़ाने और कामिनी के फूले मुंह को छिपाने के लिए भवानी प्रसाद ने समीक्षा के भाईबहन को 7-8 दिनों के लिए घर में ही रोक लिया.

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