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‘‘लेकिन 3-4 माह बाद ही आनंद ने अपनी बीवी को पत्र लिखा कि ‘मुझे बारबार बुलवाने के लिए पत्र लिख कर तंग मत करो. मैं तुम्हें अंधेरे में रख कर परेशान नहीं करूंगा. मैं तुम्हें अमेरिका नहीं बुला सकता क्योंकि यहां मेरी पत्नी है जो 3 साल से मेरा साथ अच्छी तरह निभा रही है.

‘‘‘मेरे मांबाप को एक हिंदुस्तानी बहू की जरूरत थी, सो तुम से शादी कर मैं ने उन्हें बहू दे दी. मेरा काम खत्म हुआ. अब तुम उन की बहू बन कर उन्हें खुश रखो. वे भी तुम्हें प्यार से रखेंगे. मैं भी हिंदुस्तान आने पर जहां तक संभव होगा, तुम्हें प्यार और सम्मान दूंगा लेकिन अमेरिका आने की जिद मत करना. वह मेरे लिए संभव नहीं होगा.’

‘‘इस के बाद विष्णुजी के भैयाभाभी बेटी को हमेशा के लिए ससुराल से लिवा लाए. तलाक का नोटिस भिजवा दिया. हालांकि आनंद के मातापिता ने बहुत दबाव डाला कि बहू को छोड़ दें. वे कह रहे थे, ‘इसी की सहायता से हम लोग आनंद को हिंदुस्तान लाने में सफल होंगे. आनंद हम लोगों को बहुत प्यार करता है. देरसवेर उसे अमेरिकी बीवी को ही छोड़ना पड़ेगा.’ लेकिन विष्णुदेव के भैयाभाभी नहीं माने और समधी को इस धोखे के लिए खरीखोटी सुनाईं. तलाक भी जल्दी ही मिल गया. लेकिन जरा उन लोगों की धृष्टता तो देखो, इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी हिंदुस्तानी बहू लाने का चाव गया नहीं है. फिर लड़के को देखो, वह कैसे दोबारा फिर सेहरा बांधने को तैयार हो गया.’’

किसी दूसरे के घर की यह घटना होती तो मौसी बड़ी रसिकता से आनंद के परिवार के साथसाथ उस से जुड़ने वाले बेबस परिवार को भी अपने परिहास की परिधि में लपेटने से नहीं चूकतीं. पर यहां मामला अपनी सगी बहन का था और इस संकट में उन का अवलंबन भी वही थीं. इसलिए वे पूरी संजीदगी के साथ स्थिति को विस्फोटक होने से बचाए हुए थीं.

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