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विकास की अच्छीखासी जौब थी. नौकरी करने की मुझे कोई जरूरत नहीं थी, फिर भी विकास की खुशी के लिए करती रही.जिंदगी मजे से गुजर रही थी. दोनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे. बच्चों को खूब लाड़ करते थे विकास. कहते थे मेरे

3 बच्चे हैं. हंसी आ जाती है यह बात सोच कर. वाकई बच्चों की तरह लाड़ करते थे मुझ से. रात में जब मैं विकास की बांहों में होती थी तो बोलते थे, ‘गौरवी, तुम में मुझे रोज नयापन नजर आता है. बहुत प्यार करता हूं तुम से. मेरे सिवा किसी और के बारे में सोचना भी मत कभी.’

कहां सोचा था मैं ने 8 साल तक किसी और के बारे में. सुध ही कहां रह गई थी अपनी, विकास के जाने के बाद. ब्रेन हेमरेज के बाद विकास की मौत ने जैसे सबकुछ बदल दिया था. बच्चे तो समझ ही नहीं पा रहे थे क्या हो रहा है घर में यह सब. मुझे समझ ही नहीं थी दुनियादारी की. न शादी से पहले न कभी कोई जिम्मेदारी ली थी और न शादी के बाद विकास ने मुझे कोई जिम्मेदारी दी. हमेशा यही कहते, ‘मेरे राज में तू ऐश कर, माई डियर. बस, तेरा काम है मुझे खुश रखना, समझी न.’

नौकरी जो मेरा पैशन थी, जरूरत बन गई. फिर हालात इंसान को सब सिखा देते हैं. फिर मेरे मायकेवालों और ससुरालवालों दोनों तरफ से सहारा था मुझे. आर्थिक रूप से कोई कमी न थी मुझे.

जब पिता का साया सिर पर न हो तो बच्चे भी जल्दी समझदार हो जाते हैं. मेरे दोनों बच्चे कभी जिद न करते. स्कूल में जब पेरैंट मीटिंग में जाती, हमेशा बच्चों की तारीफ ही सुन कर आती. बच्चे और घर व नौकरी बस यही जिंदगी रह गई थी.

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