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श्रीकांत एक बड़ी दुकान में सैल्समैन ही तो थे. कभी बेटे के लिए बाइक जरूरी हो गई थी तो कभी नए मौडल का एंड्रौएड फोन तो कभी ब्रैंडेड गौगल्स. प्राइवेट कालेज की फीस और बेटे का लंबाचौड़ा हाथ खर्च देतेदेते उन के फंड से काफीकुछ निकलता जा रहा था.

सुमित्रा सपनों में डूबी हुई थीं. ‘कांत, आप क्यों परेशान हो रहे हैं? मेरा राजकुमार तो ब्लैंक चैक है. उस की शादी में मनचाही रकम भर के वसूल लेना. यह अमेरिका जा कर इतने डौलर कमाएगा कि आप रुपए गिन भी नहीं पाएंगे.’

कांत नाराज हो कर बोले थे, ‘हवा में मत उड़ो. अब समय बदल गया है, दहेज के बारे में सोचना भी अपराध है.’

एक दिन अपने मित्रों के सामने वे अपने दिल का दर्द उड़ेल बैठे थे, ‘आजकल बच्चों की पढ़ाई में जितना खर्च हो जाता है उतने में तो बेटी का ब्याह भी हो जाए.’

सभी जोर से ठहाका लगा कर हंस पड़े थे कि मित्र ने कहा था, ‘बात तो सही कह रहे हो पर लड़कियां भी तो बेटे के बराबर ही पढ़ती हैं. अब मेरी बेटी भी इंजीनियरिंग कर रही है. वह तो गवर्नमैंट कालेज में पढ़ रही है और उसे स्कौलरशिप भी मिल रही है. उस का तो कैंपस सलैक्शन भी हो गया है. जिस के घर जाएगी, पैसे से उस का घर भर देगी.’

अर्णव का कैंपस सलैक्शन नहीं हुआ था. उसे कौल सैंटर में नौकरी मिली थी. अमेरिका के हिसाब से उसे रात में जा कर काम करना पड़ता था. वह शाम  7 बजे जाता था और सुबह 8 बजे लौट कर आता था. उस का शरीर रात की नौकरी नहीं झेल पाया था. वह बीमार हो कर घर लौट आया था. काफी दिनों तक उस का इलाज चलता रहा था. वहां पर उस के कई दोस्त बन गए थे जो विदेशों में पढ़ाई के साथसाथ नौकरी कर रहे थे. अर्णव भी अमेरिका जाने को उतावला हो उठा था. उस ने जीआरई के लिए तैयारी करनी शुरू कर दी. कोचिंग और फीस उस ने स्वयं ही दी थी.

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