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वे मन ही मन बेटे के भविष्य को ले कर निराश हो गए थे. एक ओर मेरी बीमारी और दूसरी ओर बेरोजगार बेटा. इसी बीच दिया की शादी भी आ गई थी. शादी में होने वाले खर्च को देख कर एक दिन दीप बोला, ‘फंड के सारे रुपए पापा दिया की शादी में खर्च कर दे रहे हैं, तो मेरे लिए क्या बचेगा?’

बेटे की यह बात सुनते ही मैं सकते में आ गई थी, यदि सोम को बेटे की यह बात पता चलेगी तो उन्हें कितना दुख होगा.

दीप के दोस्त अपनीअपनी नौकरी में व्यस्त हो गए थे. स्वयं दीप अपनी बेरोजगारी से तंग आ चुका था. न तो वह समय से नहाता था, न खाता था, चुपचाप अपने कमरे में लेटा हुआ टकटकी लगा कर छत को निहारता रहता.

हंसताखिलखिलाता हुआ घर उदासी और मनहूसियत के बादल के पीछे छिप सा गया था. सोम और उन के लाड़ले के बीच आपस में बोलचाल लगभग बंद सी हो गई थी.

तभी एक दिन दीप सोम से आ कर बोला, ‘पापा, यदि आप घर गिरवी रख कर कुछ रुपयों का इंतजाम कर दें तो मु झे नौकरी जरूर मिल जाएगी. एक एजेंट से मेरी बात हुई है, उस ने मु झे बताया है कि 3 लाख रुपए लगेंगे, उस के एवज में स्थायी नौकरी दिलवाने का वादा किया है.’

‘देखो दीप, तुम किसी ठग के चक्कर में मत पड़ना. कुछ धोखेबाज लोगों का यही धंधा है कि वे जवान लड़कों को बहलाफुसला कर उन्हें बड़ेबड़े ख्वाब दिखा कर अपना उल्लू सीधा करते हैं.’

दीप क्रोधित हो कर चिल्ला उठा था, ‘पापा, आप तो मेरा जीवन बरबाद कर के छोडि़एगा. आप मेरे बाप हैं कि दुश्मन.’

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