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लेखिका- आरती पांड्या

नियत दिन पर रजिया अपनी बेबे को ले कर अपना वादा पूरा करने के लिए चल पड़ी. उस के अब्बू ने तो साथ चलने से इनकार कर दिया, इसलिए अफशां ने अपने अब्बा से गुजारिश की तो अजीबुर्रहमान अमीरन और रजिया को ले कर कराची रेलवे स्टेशन पंहुच  गए. वहां पंहुचने पर पता चला कि दूतावास की तरफ से भारत जाने का प्रबंध केवल लक्ष्मी के लिए  किया गया है, इसलिए और कोई उस के साथ नहीं जा सकता है. रजिया ने बेबे की उम्र का हवाला देते हुए साथ जाने की इजाज़त मांगी लेकिन पाकिस्तान सरकार ने अनुमति नहीं दी. निराश रजिया ने भीगी आंखों से अपनी बेबे को रुखसत किया और अफशां के अब्बा के साथ अपने गांव वापस आ गई. अफशां द्वारा बेबे के आने की सूचना  मिलने पर संजय व उस के पापा अमृतसर के लिए रवाना हो गए.

इतना लंबा सफ़र अकेले तय करने में लक्ष्मी को बहुत घबराहट हो रही थी. तब उस के साथ सफ़र कर रही एक महिला ने उस से बातें करनी शुरू कीं और बेबे की कहानी सुनने के बाद उस ने रास्तेभर बेबे की पूरी देखभाल की और अमृतसर पर लक्ष्मी के परिवार वालों को उसे सौंप कर ही वहां से गई. अमृतसर स्टेशन पर कुछ रेलवे अधिकारियों के अलावा  प्रैस के संवाददाता और संजय एवं उस के पिता बरसों से बिछुड़ी लक्ष्मी की प्रतीक्षा में फूलों के गुलदस्ते ले कर खड़े थे.  संजय और उस के पिता ने आगे बढ़ कर लक्ष्मी के पैर छू कर जब अपना परिचय दिया तो लछमी ने आंखें मिचमिचाते हुए उन दोनों को पहचानने का प्रयास किया और फिर दोनों को कलेजे से लगा कर सिसकने लगी.

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