कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘सुन लेंगे, मेरी बला से. मैं कोई उन से डरती हूं. मैं भारत में रहने वाली बहू नहीं जो सास की गुलामी करूं. यह मेरा घर है, यहां मेरा हुक्म चलेगा. इस घर में वही होगा जो मैं चाहूंगी.’’

रमा की आवाज हम दोनों को साफसाफ सुनाई दे रही थी. तभी जोर से दरवाजा बंद होने की आवाज आई. वे लोग घर से चले गए थे. अवश्य ही रमा की बक झक कुछ देर तक तो विकास को सुननी पड़ी होगी. मालूम नहीं विकास को तब कैसा महसूस होता है जब रमा हमारे बारे में बेकार की बातें करने लगती है. चाहे हमारे सामने वह चुप रहता है, परंतु उसे सम झाने की कोशिश अवश्य करता होगा. आखिर उस की रगों में हमारा ही खून है, खून अवश्य ही रंग लाता होगा या फिर अपने घर की सुखशांति बनाए रखने के लिए खून के घूंट पी कर चुप रहता है.

मैं ने सोचा शायद बाहर अभी भी बर्फ पड़ रही है, मैं ने खिड़की के परदे से बाहर  झांकने की कोशिश की, पर बर्फ के कारण खिड़की के शीशे अपारदर्शी हो गए थे, इसलिए कुछ दिखाई न दिया. नववर्ष की पूर्व संध्या होने के कारण सड़कों पर ट्रैफिक भी काफी होगा. रात को नशे की अवस्था में विकास सब के साथ कार ड्राइव कर के आएगा, यह सोच कर मेरा मन कांप उठा.

कमला को हलकी सी नींद लग गई थी. 10 बज गए थे.

‘‘अगर तुम्हें नींद आ रही है तो सोने चलते हैं,’’ मैं ने कमला से कहा.

‘‘नहीं, सोएंगे तो 12 बजे के बाद ही. पता नहीं, नए साल की पूर्वसंध्या पर मैं आप के साथ होऊंगी भी कि नहीं,’’ कमला बोली.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...