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आसमान पर काले बादल छाने लगे थे. अचानक अंधेरा सा फैल गया. लोग इस आशंका से भागदौड़ करने लगे कि कहीं घर पहुंचने से पहले ही बारिश न होने लगे.

आज फिर सामने के चबूतरे पर कुछेक लड़के जमा हो कर जुआ खेल रहे हैं. पिछले महीने ही तो सूरज को पुलिस पकड़ कर ले गई थी. उस की मां की मृत्यु हो चुकी थी और उस का बाप दूसरा ब्याह इसलिए नहीं कर रहा था चूंकि उसे डर था कि कहीं सौतेली मां आ कर सूरज के साथ बुरा सुलूक न करे. जब तक उस का बाप नहीं आ जाता तब तक सूरज सारा दिन आवारागर्दी करता रहता है.

अरे, यह तो सुमित है. यह वहां क्यों बैठा है? क्या वह भी जुआ खेल रहा है? क्या स्कूल में छुट्टी हो गई? तब तो रोहन को भी आ जाना चाहिए था. मैं ने सुमित को आवाज दे कर बुलाना चाहा लेकिन वह मुझे चोर निगाहों से देख कर वहां से खिसक गया.

दो घर छोड़ कर अनुपमा को भी जनून सा सवार हो गया है. कार है, बंगला है फिर भी वह नौकरी पर जाती है. और उस के बच्चे? पूछो मत. सुमित को तो खैर आज ही देख रही हूं गली के इन लड़कों के साथ. लेकिन उस की जवान बेटियां अपने रसोइए के साथ हर समय हंसीठिठोली करती रहती हैं और वह भी सैंडोकट बनियान पहन कर उन लड़कियों से अजीबअजीब हरकतें किया करता है. कभी टांग अड़ा कर राह रोक लेता है तो कभी बांह दबा कर पीठ थपथपा देता है. एकाध बार अनुपमा को समझाया भी है लेकिन वह तो अपनी ही झोंक में कह देती है, ‘अब अगर नौकरी करनी है तो इन सब बातों को भुलाना ही पड़ेगा, वरना घरगृहस्थी कैसे चलेगी?’

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