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कुछ दिनों तक तो वह हर समय अपने फोन के साथ ही खेलती रहती. उन्हें तो इस नए फोन की ज्यादा जानकारी थी नहीं, लेकिन जब समझने लगीं तो पता चला कि वह लिखलिख कर दोस्तों से बात करती रहती है.

उन्होंने उसे समझाया था कि पहले पढ़ाई किया करो, उस के बाद दोस्ती वगैरह. उस समय तो वह कहना मान जाती लेकिन फिर थोड़े दिनों के बाद कुछ नया करने को उस का मन मचल उठता था.

9वीं  में उस के नंबर अच्छे नहीं आए थे. अब वह 10वीं में आ गई थी, बोर्ड था. अवधेश जी ने उस की कोचिंग की संख्या बढ़ा दी थी. उन्होंने एक दिन धीरे से उन से कहा भी था कि वह थक जाएगी तो अपनी पढ़ाई कब किया करेगी. लेकिन उन को तो अपनी पुलिसिया सोच पर किसी का हस्तक्षेप दूसरों की गुस्ताखी महसूस होता और उन्हें तो वे दुनिया का सब से बड़ा मूर्ख समझा करते थे.

वह यूनिट टैस्ट में अच्छे नंबर नहीं ला रही थी. इसलिए उस ने अपने रिपोर्टकार्ड पर खुद से साइन बनाना शुरू कर दिया था.

एक दिन वे उस की मेज ठीक कर रही थीं तो उस की कौपी के बीच में लाल निशान लगा हुआ कार्ड दिखाई दिया था. उन्होंने शाम को पंखुरी को दिखा कर पूछा, तो वह ढिठाई से बोली, ‘जाइए, पापा से कह दीजिए, मैं उन की इच्छा के अनुसार क्लास में टौप नहीं कर सकती. बस, पास हो जाऊं, यही बहुत है.’

उन्होंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की कि पढ़लिख ले, बेटा, वरना मेरी तरह पति की चार बातें सुननी पड़ेंगी.

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