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खिड़की से आती हुई धूप बिन बुलाए मेहमान की तरह कमरे में उतरने लगी तो उम्मी को भोर होने का एहसास हुआ. उस ने एक नजर पास ही पलंग पर सोते हुए नागेश पर डाली. कैसी मीठी नींद सो रहा था. थकावट से भरी सिलवटें उस के चेहरे पर स्पष्ट थीं. इस महानगर में कितनी व्यस्त दिनचर्या है उस की. वह सोचने लगी कि पूरे दिन की भागदौड़ और आपाधापी में सुबह कब होती है और शाम कब ढलती है, पता ही नहीं चलता. नागेश के प्रति उस के मन में प्रेम का दरिया हिलोरे लेने लगा था.

सर्दी की ठिठुरती सुबह में नागेश कुछ देर और सो ले, यह सोच कर उस ने धीरे से रजाई उठाई और उठने को हुई तो नागेश गहरी नींद से जाग गया, ‘‘कहां जा रही हो, उम्मी? कुछ देर और सो लो न,’’ उस ने उम्मी को कस कर अपनी बांहों में जकड़ लिया.

‘‘उठने दो मुझे. देखो, कितनी देर हो गई है,’’ उस ने खुद को पति के बंधन से मुक्त करने का प्रयास किया, जबकि भीतर से उस की इच्छा हो रही थी कि बांहों का घेरा कुछ और सख्त हो जाए. सुबह देर तक सोना उसे शुरू से ही पसंद है. इस ठिठुरती सुबह में पति के गर्माहटभरे स्पर्श ने उसे वैसे भी सिहरा दिया था. उस ने घड़ी की ओर इशारा किया, ‘‘देखो, सुबह के 7 बज चुके हैं.’’

‘‘क्यों परेशान होती हो, उम्मी. आज तो इतवार है, छुट्टी है,’’ उनींदे से नागेश ने पत्नी को याद दिलाने की कोशिश की.

इस पर वह हंस दी, ‘‘छुट्टी तो आप की है जनाब, मेरी नहीं. अगर अब भी नहीं उठी तो पानी चला जाएगा.’’

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