कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लेखक- डा. भारत खुशालानी

अधिकारी दोनों को एक बड़े कमरे में ले कर गया, जो एक प्रतीक्षालय कमरे की तरह था. गरिमा उसी कमरे में बैठी रही, जबकि मिन अस्पताल में अपने दूसरे काम से निकल गया. गरिमा को चीनी भाषा अब अच्छे से समझ आने लगी थी. उस को अधिकारी और रिसैप्शनिस्ट की बातों से समझ आ गया था कि मामला गंभीर है. उस ने हिंदुस्तान फोन लगाने की सोची, लेकिन फिर स्काइप करना ज्यादा उचित समझा. भारत में अभी दोपहर हो रही होगी और मम्मी खाना बना रही होगी, यह सोच कर उस ने स्काइप करने का विचार भी त्याग दिया. उस के बदले उस ने विश्वविद्यालय में अपनी सहेली शालिनी को फोन लगाया. ‘‘शालिनी, तेरे को विश्वास नहीं होगा. हम लोगों को अभी अस्पताल से निकलने नहीं दिया जा रहा है.’’शालिनी बोली, ‘‘क्या बात कर रही है?’’ गरिमा ने कहा, ‘‘किसी वायरस की बात कर रहे थे. शायद मेरी जांच भी करें कि किसी ऐसे व्यक्ति से संपर्क तो नहीं हो गया है.’’शालिनी ने पूछा, ‘‘वान ने अच्छे से बात की तुझ से?’’गरिमा ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, उस से मुलाकात नहीं हो पाई. शायद वह व्यस्त है.

कहीं. उस के बदले मिन झोउ नाम के लड़के ने प्रयोगशालाएं दिखाईं.’’शालिनी ने आगे पूछा, ‘‘सभी को रखा है या सिर्फ तेरे को रखा है भारतीय जान कर?’’गरिमा ने यहांवहां देखा, ‘‘अच्छा प्रश्न किया है तू ने. अभी मुझे मालूम नहीं है. और एक हाथ की दूरी पर भी रहने को बोल रहे हैं.’’शालिनी ने कहा, ‘‘देख, थोड़ी देर रुक. फिर कोई परेशानी आए तो मुझे बताना.’’गरिमा बोली, ‘‘ठीक है, चल.’’गरिमा ने फोन रख दिया. इस बात का संदेह करना जरूरी था कि सिर्फ भारतीय समझ कर उस को रखा गया था या सब के ऊपर यह लागू था. यह सोच कर गरिमा ने प्रतीक्षालय कमरे से निकल कर थोड़ी तहकीकात करना उचित समझा. थोड़ी देर के बाद उस ने शालिनी को फिर फोन लगाया, ‘‘शालिनी, मेरे खयाल से ये लोग किसी को भी बाहर नहीं जाने दे रहे हैं, सिर्फ मैं ही इस में शामिल नहीं हूं.’’शालिनी बोली, ‘‘मैं आ जाऊं वहां पर?’’गरिमा ने कहा, ‘‘नहीं, यहां मत आ. तेरे को अंदर नहीं आने देंगे. कुछ घंटों के लिए इन्होंने पूरी जगह की ही तालाबंदी कर दी है. शायद सिर्फ सावधानी बरत रहे हैं. जहां मुझे रखा है, वह अस्पताल के पुराने हिस्से में है. कोई प्रतीक्षालय कमरा लगता है, लेकिन यहां गोदाम की तरह सामान भी रखा है.’’शालिनी ने चिंता जाहिर की, ‘‘तू ठीक है?’’गरिमा ने कहा, ‘‘अभी तक तो ठीक हूं. चल, मैं बाद में कौल करती हूं.’’  अचानक गरिमा को उन चूहों के डब्बे की याद आई जिसे आज उस ने एक बूढ़े को संक्रामक रोग विभाग की ओर ले जाते हुए देखा था. चूहों तक पहुंचने की इजाजत तो आज शायद उस को कोई नहीं देगा, यही सोच कर गरिमा ने महसूस किया कि आज के दिन ही उन चूहों का आना कोई विशेष महत्त्व की बात थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...