अच्छे देशों की सूची हाल ही में मीडिया में सामने आई. स्वीडन 163 देशों की सूची में अव्वल रहा. अगर टौप 10 अच्छे देशों की बात की जाए तो इस सूची में दूसरा स्थान डेनमार्क का रहा. इस के बाद नीदरलैंड, ब्रिटेन, जरमनी, फिनलैंड, कनाडा, फ्रांस, औस्ट्रिया और न्यूजीलैंड के नाम हैं. यह सूची जैसे ही सामने आई, देश के नामीगिरामी अर्थशास्त्रियों से ले कर सरकारी महकमे के मंत्रीसंत्री तक भारत का नाम ढूंढ़ने में जुट गए. पता चला सूची में बहुत नीचे भारत का स्थान 70वां दिखाया गया है. सूची को विश्व बैंक और राष्ट्रसंघ के 35 विभिन्न पैमानों के आधार पर तैयार किया गया है.

मोदी सरकार कितना ही दावा करे कि हमारा देश बदल रहा है और आगे बढ़ रहा है. विश्व के अच्छे देशों के सूचकांक ने मोदी सरकार के दावे पर सवालिया निशान लगा ही दिया है. ‘सब का साथ सब का विकास’ का जहां तक समृद्धि और समानता का सवाल है, उस में भारत का स्थान 163 देशों में 124वां है. आजकल आर्थिक मामले में बारबार चीन से भारत की तुलना हो रही है. समग्ररूप से अच्छे देशों के सूचकांक में भारत का स्थान चीन से नीचे ही है. लेकिन जहां तक भुखमरी का सवाल है, तो 2014-2015 वित्त वर्ष में राष्ट्रसंघ की सालाना रिपोर्ट कहती है कि चीन और भारत में भुखमरी बड़ी समस्या है. लेकिन भारत की समस्या चीन की तुलना में जरा बड़ी ही है.

विश्व में सब से अधिक आबादी वाले चीन में जहां 13.38 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं, वहीं विश्व की दूसरी सब से घनी आबादी वाले भारत में 19.46 करोड़ लोगों को न्यूनतम भोजन नसीब नहीं होता. इसे और भी खुलासा कर के कहा जाए तो विश्व के 97.5 करोड़ भुखमरी में जीने वाली आबादी की एकचौथाई भारतीय आबादी है. अच्छे देशों की सूची वाले सूचकांक में समानता और विकास के लिहाज से भारत का स्थान 124वां है. तो यह है मोदी के विकास का कड़वा सच.

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