दान देने की हमारी परंपरा अति प्राचीन है. महादानियों से इतिहास भरा है. वहीं दान का स्वार्थवश दुरुपयोग किया जाना समयसमय पर उजागर होता रहा है. पौराणिक कथाओं में दान के विविध रूप धनदान, अन्नदान, अंगदान, शस्त्रदान जैसे कई तरह के दान से जुड़ी कथाएं पढ़ने को मिलती हैं लेकिन अब तकनीक और शोध के कारण इस में रक्तदान, गुर्दादान जैसी नई बातें भी जुड़ चुकी हैं.

मंदिरों में वस्त्रदान, अन्नदान, स्वर्णदान, धनदान के साथ दानियों से और उगाही के लिए अब बौंड और शेयर दान का रास्ता अपनाया जा रहा है. शेयर दान की यह परंपरा हाल ही में मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर में शुरू हुई है.

मंदिर में शेयर दान के लिए दानी कंपनियों के अपने शेयर मंदिर प्रबंधन के डीमैट अकाउंट में जमा करा सकते हैं. इस से पहले यह व्यवस्था तिरुपति बालाजी के मंदिर में लागू की गई थी. बहरहाल, धर्म के ठेकेदारों ने पढ़ेलिखे अथवा संपन्न अंधभक्तों को लूटने का यह नया तरीका ईजाद किया है. इन अंधभक्तों को शेयर के जरिए दान करना आसान लगेगा तो लूटने वाले भविष्य में दानवसूली के लिए कोई नया जरिया और भी ईजाद कर लेंगे.

मंदिरों को दान दिया जाना गलत नहीं है लेकिन मंदिरों में मिले दान का बड़े स्तर पर दुरुपयोग होता रहा है. वित्तीय अनियमितताएं मंदिरों में बड़े स्तर पर होती हैं, उन को ले कर हत्या जैसी घटनाएं भी हुई हैं. यह हाल तब है जब मंदिर के ट्रस्टों की निगरानी सरकारी स्तर पर की जाती है.

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