साल 2015-16 का बजट गांव, गरीब व किसानों के लिए है, ऐसा कहा जा रहा है. वित्तमंत्री अरुण जेटली के बजट भाषण व की गई घोषणाओं से हट कर कुछ नया करने की झलक मिलती है. उदाहरण के तौर पर पिछले साल खेती के लिए कुल तय रकम 25 हजार करोड़ रुपए को इस बार बढ़ा कर 44 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया है.

अपना इंतजाम पक्का

बजट के अनुसार इस साल सरकारी खर्च में होने वाली बढ़ोतरी के मद्देनजर सेवा कर में कृषि सेस का उपकर लगा कर सरकार ने अपनी आमदनी बढ़ाने का तो पक्का इंतजाम कर लिया है, लेकिन किसानों की आमदनी अगले 5 सालों में बढ़ कर दोगुनी होने की बात की गई है. ऐसी बातें तो पहले भी कही जा चुकी हैं.

गौरतलब है कि सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह हर साल महंगाई भत्ते व सालाना बढ़ोतरी के जरीए करीब 15 से 20 फीसदी तक बढ़ जाती है. बेशक गांव व गरीबों के नाम पर चली बहुत सी स्कीमों में पानी की तरह पैसा बहाया जाता रहा है, लेकिन किसानों की आमदनी बढ़ाने का ऐसा कोई तरीका अभी तक नहीं निकाला गया है.

यह बात आज किसी से छिपी नहीं है कि ऊपर से चला पैसा, घपले, घोटालों  गड़बड़ी के कारण नीचे गांवगरीब तक पूरा नहीं पहुंचता. ज्यादातर सरकारी कर्मचारी निकम्मे हैं व भ्रष्ट हैं. वे गांव, गरीब व किसानों के फायदे की ज्यादातर बातों की जानकारी छिपा कर रखते हैं.

लिहाजा ज्यादातर विकास योजनाओं की किसानों को खबर तक नहीं दी जाती. अकसर मक्कार, असरदार, दबंग नेता आपस में बंदरबांट कर लेते हैं और गरीब किसानों को मिलने वाली छूट, कर्ज व दूसरी सुविधाएं हड़प जाते हैं. यही वजह है कि सरकार की तरफ से चल रही कोशिशों के बावजूद छोटे किसान परेशान हैं.

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