दीवाली के मौके पर घरों के रंगरोगन कराने की पुरानी लेकिन स्वस्थ परंपरा रही है. आज  के मौडर्न जमाने में रंगरोगन को ‘वाल फैशन’ भी कहा जाने लगा है. रोशनी के पर्व से पहले घर की साफसफाई और रंगरोगन कराने के पीछे वैज्ञानिक सोच भी है. रंगरोगन से जहां समूचा घर चमक उठता है वहीं दीवारों, खिड़की के पल्लों और कोने में पनपे कई तरह के कीड़ों व बैक्टीरिया की भी सफाई हो जाती है. रंगरोगन की वैज्ञानिक सोच को भी पाखंडी पंडितों और बाबाओं ने अंधविश्वास से जोड़ दिया है. अब वास्तुशास्त्र के हिसाब से घरों की बाहरी दीवारों, कमरों, बरामदे, रसोईघर और स्टडीरूम की रंगाईपुताई कराई जाने लगी है. अकसर लोग घर का रंगरोगन कर उसे चमकाने के बजाय उस पर अंधविश्वास की कालिख पोत डालते हैं, जिस में उन की ऊर्जा व धन दोनों बरबाद होते हैं.

रंगरोगन में पोंगापंथ की बातें बाद में करते हैं, पहले रंगरोगन के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के साथ उस की तैयारियों के बारे में जान लेते हैं. रंगरोगन कराने से पहले उस का बजट बना लेना जरूरी है. इस से खर्च सीमित होगा और पैसों की बरबादी भी नहीं होगी. इंटीरियर डैकोरेटर अनुपम राज बताती हैं, ‘‘घर का रंगरोगन कराने से पहले खर्च का हिसाब बना लें. कई ब्रैंडैड कंपनियों के तरहतरह के रंग बाजार में हैं. उन की कीमतों का पता करने के साथ पेंटर के चार्ज का भी पता कर लें. कई पेंट कंपनियां रंगों के साथसाथ अब पेंटर भी मुहैया करा रही हैं. इस से पेंटर को ढूंढ़ने और उन से मजदूरी का मोलभाव तय करने की किचकिच से छुटकारा मिल जाता है. खास बात यह भी है कि फ्रीलांस पेंटरों के बजाय पेंट कंपनियों के पेंटरों की मजदूरी की दर कम होती है.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...