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हम दोनों चेन्नई में 2 महीने पहले ही आए थे. मेरे पति साहिल का यहां ट्रांसफर हुआ था. मेरे पास एमबीए की डिगरी थी. सो, मुझे भी नौकरी मिलने में ज्यादा दिक्कत न आई. हमारे दोस्त अभी कम थे. यही सोच कर दीवाली के दूसरे दिन घर में ही पार्टी रख ली. अपने और साहिल के औफिस के कुछ दोस्तों को घर पर बुलाया था. दीवाली के अगले दिन जब मैं शाम को दिये और फूलों से घर सजा रही थी तो साहिल बोले, ‘‘शैली, कितने दिये लगाओगी? घर सुंदर लग रहा है. तुम सुबह से काम कर रही हो, थक जाओगी. अभी तुम्हें तैयार भी तो होना है.’’

मैं ने साहिल की तरफ  प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘मैं क्यों, तुम भी तो मेरे साथ बराबरी से काम कर रहे हो. बस,

10 मिनट और, फिर तैयार होते हैं.’’ हम तैयार हुए कि दोस्तों का आना शुरू हो गया. पहली बार घर में इतनी चहलपहल अच्छी लग रही थी. जब टेबल पर सूप, समोसे, पकौड़े रखे तो सब खुश हो कर बोले, ‘‘वाह, चेन्नई में ये सब खाने को मिल जाए तो बहुत मजा आ जाता है.’’ फिर दौर चला बातों का, मिठाइयों का और नाचगाने का. सब ने पार्टी को खूब एंजौय किया.

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पार्टी में हमारे साथ थे साहिल के बौस और उन की पत्नी छाया. रात के 2 बजे पार्टी खत्म हुई. सभी दोस्तों ने हमें इस पार्टी के लिए धन्यवाद दिया. दिनभर की थकान के बाद भी आंखों में नींद नहीं थी. मैं और साहिल बालकनी में बैठ गए बातें करने के लिए. खामोश रात और रंगीन जुगनुओं की चमक से चमकता शहर बहुत सुंदर लग रहा था. ‘‘साहिल, एक बात गौर की तुम ने कि तुम्हारे बौस की बीवी कितनी चुप थीं. न तो वे खाना खाते समय कुछ बोलीं और न खेलते समय. ऐसा लग रहा था जैसे एक मशीन की तरह सबकुछ कर रही हैं. वे सुंदर तो थीं पर खुश नहीं लग रही थीं.’’

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