महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित एमआईएम मुखिया असदुद्दीन ओवैसी देश के अन्य राज्यों के चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं.

वर्ष 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मुसलिम विधायकों की संख्या 11 से घट कर 9 हो गई. कहने को 2 सीटों का नुकसान हुआ लेकिन राज्य में जिस तरह मजलिस इत्तेहादुल मुसलेमीन यानी एमआईएम ने 2 सीटें हासिल कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, उस से सियासी पंडितों की बेचैनी बढ़ी है. यह सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है कि क्या मुसलिम मतदाताओं की सोच में तबदीली आ रही है? क्या अब मुसलमानों ने भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना से डरना छोड़ दिया है? क्या एमआईएम के पीछे भाजपा है ताकि हिंदू वोटरों को एकजुट रखा जा सके?

ये सवाल इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैं कि एमआईएम ने न केवल 2 सीटों पर कामयाबी हासिल की बल्कि कई सीटों पर वह दूसरे स्थान पर रही और कुछ सीटों पर तीसरे स्थान पर.

पार्टी इस कामयाबी से इतनी खुश है कि वह अब देश के अन्य राज्यों--दिल्ली, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है. जबकि मुंबई नगर निकाय चुनाव में हिस्सा लेने की घोषणा ने सियासी तापमान को बढ़ा दिया है.

महाराष्ट्र में मुसलमानों की जनसंख्या कुल आबादी की 10.6 फीसदी है और वह राज्य का सब से बड़ा अल्पसंख्यक समूह है लेकिन यदि उन का सियासी प्रतिनिधित्व आंकड़ों में देखा जाए तो 1999 की विधानसभा में मुसलिम विधायकों की संख्या 12 थी, 2004 में यह संख्या 11 रह गई, 2009 के चुनाव में 1 मुसलिम विधायक और कम हो कर 10 रह गई जिस में 6 विधायक मुंबई शहर से निर्वाचित हुए थे. 288 सदस्यीय विधानसभा में कम से कम 40 क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुसलिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.

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