पर्यटन के हर रंग को अपने में समेटे उत्तर प्रदेश में जहां गुलाबी पत्थरों से सजा लखनऊ है, पश्चिमी खानपान से ले कर देशी खाने का निराला स्वाद है वहीं घाटों का शहर वाराणसी, शिक्षा व साहित्य की राजधानी इलाहाबाद और आगरे का मशहूर ताजमहल भी दर्शनीय हैं. यानी पर्यटन का हर नजारा यहां मौजूद है.
पर्यटन के लिहाज से उत्तर प्रदेश में बहुत सारी जगहें हैं. यहां के लखीमपुरखीरी जिले में बना दुधवा नैशनल पार्क वन्यजीव पर्यटन के लिए सब से खास जगह बन गई है. यह भारत और नेपाल की सीमा क्षेत्र में फैला वन है. 1977 में इस को दुधवा के जंगलों में बनाया गया था. 1987 में किशनपुर वन्यजीव, विहार को इस में शामिल कर दिया गया. 884 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह बाघ संरक्षित वन है. यहां पर हाथी, गैंडा, बारहसिंगा और हिरन जैसे तमाम जीव भी हैं. मगरमच्छ व घडि़याल भी यहां पर देखे जाते हैं. साल, असना, बहेड़ा, जामुन और बेर के तमाम पेड़ यहां पर हैं. बाघ और गैंडों को बचाने के लिए कई योजनाएं भी यहां चल रही हैं.
पर्यटकों के रुकने के लिए आधुनिक शैली में बनी थारू हट और रेस्ट हाउस उपलब्ध हैं.  यहां लकड़ी के मचान बने हैं जिन से पूरे क्षेत्र को देखा जा सकता है. यह पार्क दिल्ली से 430 किलोमीटर और लखनऊ से 230 किलोमीटर दूर है. करीबी रेलवे स्टेशन पलिया है. यहां से 10 किलोमीटर दूर दुधवा पार्क है. यहां रुकने के लिए ट्री हाउस भी बना है. यह विशालकाय साखू के पेड़ पर 50 फुट ऊपर बना है. डबल बैडरूम वाला यह ट्री हाउस सभी सुविधाओं से लैस है. यहां रुकने के लिए पहले से बुकिंग करानी होती है. ज्यादातर लोग इसे देख कर ही मजा लेते हैं.
नवंबर से मार्च तक का सीजन घूमने के लिए सब से अच्छा होता है. 15 नवंबर के बाद इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया जाता है. यहां का प्रवेश शुल्क 100 रुपए प्रति व्यक्ति, गाइड का 200 रुपए प्रति शिफ्ट, हाथी की सवारी के लिए 600 रुपए 4 आदमियों के लिए, जिप्सी का 1 हजार रुपए प्रति शिफ्ट और बस का 200 रुपए प्रति सीट पड़ता है. सामान्य हट के लिए 300 रुपए, वीआईपी 500 रुपए, डौरमैट्री 75 रुपए प्रति बैड देना पड़ता है. अगर उत्तर प्रदेश घूमने की शुरुआत दुधवा नैशनल पार्क से करें तो बेहतर हो सकता है. इस के बाद उत्तर प्रदेश के बाकी शहरों को घूमा जा सकता है.
लखनऊ  
राज्य की राजधानी लखनऊ बहुत ही साफसुथरी और ऐतिहासिक जगह है. अगर आप हैरिटेज टूरिज्म के शौकीन हैं तो लखनऊ की इमारतें वास्तुकला का बेजोड़ नमूना साबित होंगी. अब  यहां गुलाबी पत्थरों का प्रयोग कर नए पार्क और स्मारक बन गए हैं जो खास आकर्षण का केंद्र हैं.
1775 से 1856 तक लखनऊ अवध राज्य की राजधानी था. नवाबी काल में यहां अदब और तहजीब का विकास हुआ. लखनऊ का इतिहास बहुत पुराना है. समय के साथसाथ इस का नाम और पहचान बदलती रही है.     लखनऊ में पश्चिमी व्यंजनों से ले कर देशी व्यंजनों तक का निराला स्वाद लिया जा सकता है. यहां पर बहुत तेजी के साथ बडे़ रैस्तरां खुले हैं. मौजमस्ती के लिए आनंदी वाटर पार्क, ड्रीमवैली, दयाल पैराडाइज और स्कौर्पियो क्लब जैसी जगहें हैं. लखनऊ में  खाने के लिए छप्पनभोग की चाट, समोसे और कुल्फी के साथ टुंडे के कबाब और बिरयानी का स्वाद लिया जा सकता है.
लखनऊ फलों में दशहरी आम और मिठाई में गुलाब रेवड़ी के लिए मशहूर है. हजरतगंज, अमीनाबाद और चौक जैसे बाजार बहुत ही मशहूर हैं.  अब शौपिंग मौल और मल्टीप्लैक्स सिनेमा लखनऊ की नई पहचान बन गए हैं.
अंबेडकर स्मारक गोमती नगर और कांशीराम ईको गार्डन वीवीआईपी रोड भी लखनऊ के पर्यटन की नई पहचान बन गए हैं. यहां देखने और घूमने के लिए बहुत सारी चीजें हैं. खासतौर पर रात में यहां की लाइटिंग किसी का भी मन मोह लेती है. बड़ा इमामबाडा (भूलभुलैया) लखनऊ की सब से खास हैरिटेज इमारत है.  हर पर्यटक इस को जरूर देखना चाहता है. चारबाग रेलवे स्टेशन से लगभग 6 किलोमीटर दूर बना इमामबाड़ा वास्तुकला का अद्भुत नमूना है. 1784 में इस को नवाब आसिफउद्दौला ने बनवाया था.  इस इमारत का पहला अजूबा 49.4 मीटर लंबा और 16.2 मीटर चौड़ा एक हौल है. इस में किसी तरह का कोई खंभा नहीं है.
बडे़ इमामबाड़े से 1 किलोमीटर आगे बना छोटा इमामबाड़ा लखनऊ की दूसरी बड़ी हैरिटेज इमारत है.  मुगलस्थापत्य कला के इस बेजोड़ नमूने का निर्माण अवध के तीसरे नवाब मोहम्मद अली शाह के द्वारा 1840 में कराया गया था. यहां नहाने के लिए एक खास किस्म का हौज बनाया गया था जिस में गरम और ठंडा पानी एकसाथ आता था. इस इमारत में शीशे के लगे हुए झाड़फानूस बहुत ही खूबसूरत हैं.
बड़े इमामबाड़े और छोटे इमामबाड़े के बीच के रास्ते में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं. इन को पिक्चर गैलरी, घड़ी मीनार और रूमी दरवाजा के नाम से जाना जाता है. इन सब जगहों पर जाने के लिए टिकट इमामबाड़े से ही एकसाथ मिल जाता है.  इमामबाड़े के बाहर बने 60 फुट ऊंचे दरवाजे को रूमी दरवाजा कहा जाता है. इस के नीचे से सड़क निकलती है.  इस दरवाजे के निर्माण की खास बात यह है कि इस को बनाने में किसी तरह के लोहे या लकड़ी का प्रयोग नहीं किया गया है. रूमी दरवाजे से थोड़ा आगे चलने पर घड़ी मीनार बनी है. 221 फुट ऊंची इस मीनार का निर्माण 1881 में हुआ था. इस में लगी घड़ी का पैंडुलम 14 फुट लंबा है. इस का 12 पंखडि़यों वाला डायल खिले फूल की तरह का दिखता है.
लखनऊ का ला मार्टिनियर भवन यूरोपीय स्थापत्यकला का बेजोड़ नमूना है. यहां पर ला मार्टिनियर स्कूल चलता है.  महलनुमा बनी इस इमारत में एक झील बनी हुई है.
रेजीडेंसी का निर्माण अवध के नवाब आसिफउद्दौला ने 1780 में शुरू कराया था. यह इमारत 20 साल में बन कर तैयार हुई थी.  यह इमारत हजरतगंज बाजार से 3 किलोमीटर दूर है. 1857 की लड़ाई में अगरेजों ने इस पर कब्जा कर के इस को अपना निवासस्थल बना लिया. इस कारण इस का नाम रेजीडेंसी पड़ गया. इस की दीवारों पर आज भी आजादी की लड़ाई के चिह्न मौजूद हैं.  यहां बना खूबसूरत लौन इस की खूबसूरती में चार चांद लगाता है.
रेजीडेंसी के करीब ही शहीद स्मारक बना हुआ है. 1857 में शहीद हुए वीरों की याद में इस को गोमती नदी के किनारे बनवाया गया था. यहां नौका विहार का मजा भी लिया जा सकता है.
वाराणसी 
वाराणसी शहर गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है. यह उत्तर प्रदेश का सब से पुराना शहर है. वाराणसी शहर में नदी के किनारे इतने घाट बने हुए हैं कि इस को घाटों का शहर भी कहा जाता है. सुबह के समय सूर्य की किरणें जब नदी के जल पर पड़ती हैं इन घाटों की शोभा देखते ही बनती है.  वाराणसी में अर्द्धचंद्राकार गंगा के किनारे लगभग 80 घाट बने हुए हैं.
वाराणसी में तैयार होने वाली साडि़यां अच्छी होती हैं.  इन को बनारसी साड़ी के नाम से जाना जाता है.  वाराणसी के पास बसा भदोई शहर का कालीन उद्योग भी बहुत खास है. धार्मिक खासीयत वाले वाराणसी शहर में पंडों और पुजारियों की अराजकता भी बहुत होती है.  ये लोग यहां घूमने आने वाले लोगों को धार्मिक अनुष्ठान में फंसाने की कोशिश करते हैं. पंडित मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हर विषय की उच्च स्तरीय पढ़ाई होती है.  यह एशिया का सब से बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है.  ‘भारत कला भवन’ इस विश्वविद्यालय की शोभा है.  इस की कला वीथिका में अप्रतिम कलाकृतियां रखी हैं.  इस का नया विश्वनाथ मंदिर आधुनिक तरह से बना हुआ है. घूमने वाले यहां पर जरूर आते हैं.
काशी नरेश शिवोदास द्वारा बनवाया गया काशी विश्वनाथ मंदिर दशाश्वमेध घाट के पास बना हुआ है. यहां तक पहुंचने के लिए संकरी गलियों से हो कर गुजरना पड़ता है. इस मंदिर में दर्शकों की भीड़ अधिक होने के कारण यहां पर गंदगी बहुत रहती है. संकरी गलियों का लाभ उठा कर चोरउचक्के लोगों के सामान पर हाथ साफ कर देते हैं. घूमने वालों को इस बात से सावधान रहना चाहिए. वाराणसी का भारत माता मंदिर भी उत्कृष्ट कला का एक नमूना है. इस को राष्ट्रभक्त बाबू शिवप्रसाद गुप्त द्वारा बनवाया गया था. यह भी देखने लायक है. यह मंदिर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के परिसर में बना हुआ है.  इस मंदिर में संगमरमर से तराश कर अनेकता में एकता के प्रतीक अखंड भारत का मानचित्र बनाया गया है.  घूमने वाले इस को जरूर देखते हैं.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 2 किलोमीटर दूर गंगा नदी के उस पार स्थित रामनगर किला काशी नरेश का पैतृक निवास है.  इस किले में एक संग्रहालय भी है जहां पर राजसी ठाटबाट के प्रतीक तीर, तलवार, बंदूकें और कपडे़ रखे हैं. रामनगर किला अपनी वास्तुकला के लिए बहुत ही मशहूर जगह है. आज भले ही इस का रखरखाव सही ढंग से नहीं हो रहा पर इस को देख कर उस समय की कला का पता चल जाता है.
वाराणसी से 10 किलोमीटर दूर बसा हुआ सारनाथ सम्राट अशोक के स्तूपों वाला शहर है. इसी स्तूप पर बने शेरों को भारत सरकार के राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के रूप में लिया गया है. यहां का हराभरा बाग और फूलों का बगीचा घूमने वालों का मन मोह लेता है. यहां पर मूलगंध कुटी भी देखने वाली जगह है. यहां के पुरातात्विक संग्रहालय में बौद्ध प्रतिमाओं व शिलालेखों को भी देखा जा सकता है.
आगरा
ताजनगरी आगरा उत्तर प्रदेश की एक बहुत ही खास घूमने वाली जगह है. यहां जो भी आता है विश्वविख्यात ताजमहल को देखने जरूर जाता है. अगर आप हैरिटेज टूरिज्म के शौकीन हैं तो ताज के साथ फतेहपुरसीकरी और आगरा किला भी जरूर देखिए. ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में कराया था. यह सफेद संगमरमर का बना हुआ है. इस को बनाने में 22 साल लगे. ताजमहल को मुगलशैली के 4 बागों के साथ बनाया गया है. ताजमहल को आगरा के किले से भी देखा जा सकता है. शाहजहां को जब औरंगजेब ने किले में कैद कर दिया था तो उस समय वह वहां से ही ताजमहल को देखा करता था.
नीचे मुमताज महल की कब्र बनी है. ताजमहल को बनाने में बहुमूल्य रत्न और पत्थरों का प्रयोग किया गया था. सफेद संगमरमर से बने ताजमहल के  पास मखमली घास का मैदान है. इस के पिछले किनारे पर यमुना नदी बहती है. ताजमहल अपने अंदर बहुत सारी खूबियां समेटे हुए है. इस का एक हिस्सा गरमियों में भी सर्दियों की डंठक का एहसास कराता है. यहां पर खरीदारी करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. ताजमहल हर वर्ग, खासतौर से प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है. ताजमहल के सामने बैठ कर कोई भी फोटो खिंचवाना नहीं भूलता.
आगरा का किला, ताजमहल की ही तरह अपने इतिहास के लिए जानापहचाना जाता है. आगरा का किला विश्व धरोहर माना जाता है. इस का निर्माण 1565 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा कराया गया था. इस के बाद मुगल बादशाह शाहजहां ने इस का पुनर्निर्माण कराया. इस किले में जहांगीर महल, दीवाने ए खास, दीवाने ए आम और शीश महल देखने वाली जगहें हैं. यह किला अर्द्धचंद्राकार आकृति में बना है. इस की दीवार सीधे यमुना नदी तक जाती है. आगरा का किला 2.4 किलोेमीटर परिधि में फैला हुआ है. सुरक्षा के लिहाज से किले की दीवारों को काफी मजबूत बनाया गया है.
फतेहपुरसीकरी आगरा से 35 किलोमीटर दूर बसा है. इस का निर्माण अकबर ने कराया था. यहां पर शेख सलीम चिश्ती की दरगाह थी. इस कारण अकबर ने अपनी राजधानी आगरा से हटा कर फतेहपुरसीकरी कर ली थी. यहां पर कई इमारतें बनी हैं जो मुगलकाल की वास्तुकला
का बेजोड़ नमूना हैं. फतेहपुरसीकरी में पानी की कमी के कारण अकबर को अपनी राजधानी वापस आगरा लानी पड़ी थी. फतेहपुर सीकरी के गेट को बुलंद दरवाजा कहते हैं. कहा जाता है कि बुलंद दरवाजा बिना नींव के बनाया गया है.
झांसी
झांसी शहर को आजादी की नायिका रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है. ग्वालियर हवाई अड्डा यहां से 98 किलोमीटर दूर है. यह शहर मुंबईदिल्ली रेलमार्ग पर पड़ता है. यहां के लिए मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, तिरुअनंतपुरम, कोलकाता, इलाहाबाद और लखनऊ जैसे तमाम शहरों से रेल सुविधा उपलब्ध है.  नैशनल हाईवे 25 और 26 से जुड़ा हुआ झांसी शहर अपनी ऐतिहासिक पहचान के लिए पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. यहां के लिए खजुराहो, ग्वालियर, छतरपुर, महोबा, देवगढ़, ओरछा, लखनऊ, कानपुर, दतिया, शिवपुरी, फतेहपुर, चित्रकूट, जबलपुर से बस सेवा भी उपलब्ध है.
रानी लक्ष्मीबाई का किला इस शहर की सब से खास घूमने वाली जगह है. वर्ष 1857 में आजादी की लड़ाई में अंगरेजों ने जिस किले पर गोले बरसाए थे वह आज भी वैसा का वैसा खड़ा हुआ है.  बंगरा की पहाडि़यों पर बना यह किला 1610 में राजा वीर सिंह जूदेव द्वारा बनवाया गया था. 18वीं शताब्दी में झांसी और उस के किले पर मराठों का अधिकार हो गया था.  मराठों के अंतिम शासक गंगाधर राव थे जिन की मृत्यु 1853 में हो गई थी. उस के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने शासन की बागडोर संभाल ली थी.  किले में अष्टधातु की बनी ‘कड़क बिजली’ और ‘भवानी शंकर’ नामक 2 तोपें आज भी रखी हैं.
रानी महल : इस इमारत को बाई साहब की हवेली के नाम से जाना जाता था.  यह महल शहर के बीच में बना हुआ है. इस का निर्माण रघुनाथ राव और महारानी लक्ष्मीबाई के समय में हुआ था. इसी वजह से इस को बाद में रानी महल कहा जाने लगा.  इस महल में रंगबिरंगी चित्रकारी देखने को मिलती है.  इसे देख कर पहले की शिल्पकला के बारे में पता चलता है.  किले में बड़ीबड़ी दालानें बनी हैं. उन में पत्थर की कारीगरी की गई है.  दीवारों पर बनी मेहराबों में भी प्राचीन कला का नमूना देखने को मिलता है.
इतना पुराना होने के बाद भी यह महल पहले जैसा ही दिखता है. इस महल का भी आजादी की लड़ाई से पुराना रिश्ता है.  इसी महल में रह कर महारानी लक्ष्मीबाई ने अंगरेजों के खिलाफ लोहा लेने की योजना बनाई थी. अंगरेजों के साथ लड़ाई कैसे लड़नी है, इस बात का प्रशिक्षण यहीं दिया गया था.  अब इस रानी महल में पुरातात्विक विभाग का संग्रहालय है.
इलाहाबाद
इलाहाबाद उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक नगर है. यह राजनीति, शिक्षा और फिल्म सभी के लिए बराबर मशहूर रहा है. इलाहाबाद गंगा,
यमुना और न लुप्त हो चली सरस्वती नदी के किनारे पर बसा हुआ है.  इलाहाबाद से देश को 3 प्रधानमंत्री देने वाले नेहरू परिवार का करीबी रिश्ता रहा है.
यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है.  यहां एक रेतीला मैदान है जहां पर हर साल दिसंबर से फरवरी के बीच माघ मेले का आयोजन होता है. इस को कुंभनगरी के रूप में भी जाना जाता है.
संगम तट पर बना अकबर का किला ऐतिहासिक इमारत है. किले के सामने एक अशोक स्तंभ भी बना है.  किले में जोधाबाई का रंगमहल भी बना हुआ है. बड़ेबडे़ पत्थरों की चारदीवारी से घिरा खुसरो बाग मुगलकाल की अद्भुत कला का नमूना है. लकड़ी के विशाल दरवाजे वाला खुसरो बाग जहांगीर के पुत्र खुसरो द्वारा बनवाया गया था. इस में अमरूद और आंवले के पेड़ों का बगीचा है. खुसरो और उस की बहन सुलतानुन्निसा की कब्रों पर बना ऊंचा मकबरा भी मुगलकालीन स्थापत्यकला का अद्भुत नमूना है.
आजाद पार्क : इस पार्क को कंपनी बाग के नाम से भी जाना जाता है. फूलों से सजा यह पार्क देखने लायक है.  यहां जाडे़ के दिनों में कुनकुनी धूप और गरमियों में शाम का मजा भी लिया जा सकता है. पार्क में लगी मखमली घास बैठने वालों को आरामदायक लगती है. इस पार्क का ऐतिहासिक महत्त्व है. आजादी की लड़ाई के नायक शहीद चंद्रशेखर आजाद जब अंगरेजों से घिर गए थे तब उन्होंने इसी पार्क में अपने को गोली मार ली थी.
आनंद भवन : यह इलाहाबाद की जानीमानी इमारत है.  यह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पैतृक आवास था.  इस को अब एक संग्रहालय का रूप दे दिया गया है.  इस में एक भव्य तारामंडल बना हुआ है.  इस इमारत को गांधीनेहरू परिवार की स्मृतियों की धरोहर के रूप में देखा जाता है.

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