वीरों के कई किस्से सुने थे. हिंदी गद्य गरिमा में वीर और वीरांगनाओं के साहस की कहानियां और पद्य में वीररस में पगी कविताओं में राजपूतों व राणाओं के बलिदान की गाथा मन में रोमांच भर देती थी. कक्षा में जब इतिहास की मैडम पढ़ाती थीं तो मैं इतिहास की गलियों में घूमतेघूमते कहां से कहां पहुंच जाया करता था. राजस्थान के इतिहास से मैं खासा प्रभावित था. जेहन हमेशा से उन स्थानों पर व्यक्तिगत तौर पर जाने के लिए मचलता था जिन के बारे में मैं अपनी पाठ्यपुस्तकों में पढ़चुका था. मैं ने जब इस ऐतिहासिक धरती पर कदम रखा तो मेरी कल्पनाएं, मेरी अनुभूति के सामने छोटी पड़ गईं.

कुंभलगढ़

मेरे सफर की शुरुआत हुई जयपुर से. एक सुखभरी ड्राइविंग की बात की जाए तो मैं यही कहूंगा कि जयपुर से कुंभलगढ़ के बीच बना राजमार्ग सब से शानदार ड्राइविंग अनुभव कराता है. मैं इस रास्ते की तुलना रेशम से बनी कालीन से करूंगा जिस पर गाड़ी चलाने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती, बल्कि वह आसानी से आगे बढ़ती जाती है. मजे की बात यह है कि ड्राइविंग के साथ गुजरते वक्त में राजस्थान के ग्रामीण दृश्य किसी की भी आंखों की कूंची से उतर कर मन के कैनवास पर छप जाएंगे. जी हां, इन रास्तों पर दिखने वाला हर दृश्य आप को किसी राजस्थानी पेंटिंग की तरह लगेगा. कुंभलगढ़  के मोड़ पर गाड़ी घुमाते ही रंगबिरंगे कपड़ों और पगडि़यों में खेतीबाड़ी में मशगूल गांव की महिलाएं और पुरुषों को देख आप खुद को राजस्थानी संस्कृति के काफी करीब महसूस करेंगे. यदि आप ने भोर में ही जयपुर से अपनी यात्रा प्रारंभ कर दी है तो आप दिन के दूसरे पहर यानी दोपहर बाद कुंभलगढ़ पहुंचने में सफल रहेंगे. यात्रा के मध्य पड़ने वाले शहर अजमेर का भ्रमण करने का भी विचार है तो आप कुंभलगढ़  जाने से पहले यहां की सैर कर सकते हैं.

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