28 जून की उस तपती दोपहर मरुधरा जोधपुर से दिल्ली के लिए उड़ान भरते वक्त यह एहसास भी नहीं था कि 5 दिन बाद जब हम लौटेंगे तो खट्टीमीठी यादों की इतनी अनगिनत पोटलियां हमारे इर्दगिर्द लटकी होंगी कि हम से संभाले नहीं संभलेंगी.
जोधपुर से कोटा अपने शहर तक की वापसी सड़कयात्रा के दौरान भी हम अपनी ये पोटलियां संभालतेखंगालते रहे. छिटपुट बारिश और हलकेफुलके नाश्ते के मध्य पोटलियों से मीठीमीठी सुमधुर यादों का छलकना पूरे रास्ते मन को उत्फुल्ल बनाए रहा. पर आदत से लाचार लेखकीय मन कलम थामने और कागज रंगने को बेताब हो रहा था. इसलिए एक दिन जब सभी को स्कूल, औफिस भेज कर थोड़ी फुरसत की सांस ली तो यादों की अब तक समेटी पोटलियां खुद ही एकएक कर खुलने लगीं.
जोधपुर से दिल्ली 55 मिनट का हवाई सफर पलक झपकते ही कट गया था. इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की छटा निराली थी. वहां की सफाई, साजसज्जा देख कर स्वयं के भारतीय होने पर गर्व हो आया था. फूड वेस्ट, पेपर वेस्ट, रिसाइक्लेबल वेस्ट आदि के लिए अलगअलग डस्टबिन थे. पासपोर्ट, वीजा चैकिंग की प्रक्रिया बेहद लंबी व चुनौतीपूर्ण थी.
हम हैरान थे कि इतने तामझाम और सुरक्षा बंदोबस्त के बीच भी कैसे आतंकवादी गतिविधियां घट जाती हैं. हमारे पेरैंट्स भी साथ थे. उन की दवा आदि लेने के लिए रखी छोटी सी पानी की बोतल भी सिक्योरिटी से निकालना भारी पड़ गया क्योंकि नियमानुसार हवाईयात्रा में तरल पदार्थ को ले जाने की इजाजत नहीं है.
एअरपोर्ट पर हम ने खूब तसवीरें लीं. दुबई तक का 3 घंटे का हमारा हवाई सफर आरामदायक रहा. वहां पहुंचते ही हम ने अपनी घडि़यां डेढ़ घंटा पीछे कर लीं. रात को 12 बज रहे थे लेकिन घड़ी के अलावा और कहीं गहन रात्रि होने का आभास नहीं था. चकाचौंध लाइट्स और यात्रियों की गहमागहमी से एअरपोर्ट गुलजार था.
अपनेपन का एहसास
बुर्का पहने औरतों और शेख की वेशभूषा के अलावा उन का सभी कुछ आधुनिक था. आधे से ज्यादा लोग हिंदुस्तानी थे या पाकिस्तानी और हिंदी या अंगरेजी भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे. उन का मेकअप, ऐक्सैसरीज, एक्सैंट, शिष्टाचार सभीकुछ हमें सहज बनाते चले गए. हमें लग रहा था हम अपने ही देश में हैं. लेकिन जल्द ही स्वदेश में होने का एहसास लुप्त हो गया क्योंकि एक बार फिर हमें इमीग्रेशन की सख्त प्रक्रिया से गुजरना पड़ा.
एअरपोर्ट से ले कर वहां की किसी भी महत्त्वपूर्ण इमारत, यहां तक कि होटल तक में घुसने पर भी पासपोर्ट, वीजा चैकिंग की प्रक्रिया से दोचार होना पहले दिन से ही हमारी आदत में शुमार हो गया था. कई जगह प्रवेश के पूर्व तसवीर भी उतारी जाती थी. जैसा कि हमें पहले से चेता दिया गया था, वहां सबकुछ सहज उपलब्ध था सिवा डिं्रकिंगवाटर के. होटल में डिं्रकिंगवाटर मंगवाने पर जूस पेश कर दिया जाता था. 
हमारा विदेशभ्रमण का यह पहला अवसर था. और मुझे यह स्वीकारने में कोई संकोच नहीं हो रहा कि मैं ने इतनी स्वच्छ सड़कें, इतना सुरक्षित यातायात, वह भी बिना किसी वरदी वाले की उपस्थिति के पहली बार देखा था. चूंकि हम एक हौलीडे प्लानर के तहत इस यात्रा पर गए थे इसलिए हमें घुमानेफिराने के लिए बढि़या से बढि़या एअरकंडीशंड गाडि़यां, ड्राइवर और गाइड उपलब्ध थे. और नोटिस करने योग्य बात यह थी कि ये 
सभी या तो हिंदुस्तानी थे या पाकिस्तानी और आराम से हिंदी मिश्रित अंगरेजी में बात कर रहे थे. बड़ा अच्छा लगा यह देख कर कि वहां हिंदुस्तानी, पाकिस्तानी एक ही ब्रीड के माने जाते हैं. उन्होंने हमें दुबई के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध करवाईं. मसलन, वहां किसी भी तरह का 
कोई टैक्स नहीं लगता, न सर्विसटैक्स, न सैल्सटैक्स और न ही इन्कमटैक्स.
नियम और कायदे
यह जान कर आश्चर्य हुआ कि जहां दाऊद इब्राहीम जैसा डौन रहता हो वहां जीरो क्राइम है. क्योंकि वहां के कानून बेहद सख्त हैं. हम इंडियंस 
के लिए ये सभी बातें अविश्वसनीय सी थीं. उन्होंने हमें स्पष्ट कर दिया कि यदि हम ने सड़क पर या डस्टबिन के अलावा कहीं भी कुछ गिराया, यहां तक कि उन की गाड़ी को भी गंदा किया, तो 500 दिरहम इंडियन करैंसी में 8,500 रुपए फाइन देना होगा. हम सोचने लगे, ये कितने सख्त दिल वाले लोग हैं. लेकिन कदमकदम पर उन की सहृदयता देख हम अभिभूत हो गए. कहीं भी गाड़ी से चढ़नाउतरना या ज्यादा चलना होता वे आगे बढ़ कर पेरैंट्स का हाथ थाम लेते थे. सुबह से देर रात तक गधों की तरह काम में जुटे रहते हैं. रात को बिस्तर पर निढाल पड़ जाते हैं. सुबह फिर काम पर निकल पड़ते हैं.
सैड ड्यून पर कू्रजर से सवारी के दौरान बेटी का जी मिचलाने लगा तो ड्राइवर ने काफिले का साथ छोड़ दिया और एक साइड में गाड़ी रोक दी. गाड़ी से ठंडा पानी निकाल कर लाया, ‘जब गुडि़या की तबीयत संभलेगी तभी हम आगे बढ़ेगी.’ उस का अरबी अंदाज में बातचीत करना बेटे को बहुत गुदगुदा रहा था. वह मेरे कान में फुसफुसाया, ‘ये अंकल मूवीज की नकल करते हुए बोलते हैं. मूवीज में शेख ऐसे ही बोलते हैं.’ मैं ने उसे समझाया, ‘यह उन की नकल नहीं कर रहा. ऐक्टर्स इन की नकल कर के बोलते हैं.’
गाइड द्वारा प्रस्तुत एक और तथ्य हमें हैरान कर गया और वह था नागरिकता संबंधी नियम. उस ने बताया कि आप चाहे यहां 100 साल रह जाओ, यहां के पुरुष या स्त्री से शादी कर लो पर आप यहां की नागरिकता हासिल नहीं कर सकते. आप का बर्थ चाहे यहां का हो पर आप के पेरैंट्स 
यहां के नहीं हैं तो भी आप को यहां की नागरिकता नहीं मिल सकती.
दुबई सिटी दर्शन के दौरान हम ने जुमैरा बीच, बुर्ज अल अरब, बुर्ज खलीफा, अटलांटिस पाम, दुबई मौल, मौल ए एमीरैट्स, दुबई म्यूजियम आदि खूबसूरत दर्शनीय स्थलों की सैर की. साथ ही, जम कर फोटोग्राफी भी की. बुर्ज खलीफा दुनिया की सब से ऊंची मीनार है. 124 मंजिली इस इमारत की आखिरी मंजिल पर एलिवेटर से पहुंचने में हमें मात्र 64 सैकंड लगे. और आश्चर्य, इतनी तीव्र गति का हमें एहसास तक नहीं हुआ. वह तो ऊपर पहुंच कर नीचे का नजारा देखा तब विश्वास हुआ कि हम कितनी ऊंचाई पर 
हैं. उतरते वक्त म्यूजिकल फाउंटेन के दिलकश नजारे ने मन मोह लिया. लग रहा था किसी मुगल गार्डन में पहुंच गए हैं.
वक्त की पाबंदी इतनी कि हमें कभी कहीं इंतजार नहीं करना पड़ा. एक और बात जिस ने हमें हैरत में डाला, वह थी कदमकदम पर बुर्कों में खड़ी महिला वौलंटियर्स. उन का मेकअपयुक्त चेहरा और नफासतभरी अंगरेजी मन मोह लेती थी. पुरुष वौलंटियर्स सफेद चोगे और सफेद स्कार्फ में नजर आते थे. सभी मुस्तैद और पगपग पर मदद करने को तत्पर. पूरा शहर बेहद खूबसूरत और व्यवस्थित तरीके से बसा हुआ है. एक जैसे आवास, गगनचुंबी इमारतें और मीनारें मन मोह लेने वाली थीं. ट्विस्टिड टावर देखने से लगता है कि बीच से इस इमारत को 90 डिगरी के एंगल पर मोड़ दिया गया है.
पहले दिन सिटी भ्रमण के बाद हम ने होटल आ कर आराम किया. फिर सैंड ड्यूंस पर जाने के लिए दूसरी गाड़ी में सवार हुए. टीलों पर गाड़ी चढ़ाने से पहले ड्राइवर ने पहियों की आधी हवा निकाल दी थी. फिर सब के सीटबैल्ट कस दिए थे. इस के बाद 20-25 गाडि़यों का काफिला टीलों पर भागने लगा था. 
टीलों के बीच बने गंतव्यस्थल तक पहुंचतेपहुंचते हम सब बेदम हो चुके थे. पर वहां पहुंचते ही जो बैठने, खानेपीने, नृत्यसंगीत आदि 
की व्यवस्था देखी तो सारी थकान छूमंतर हो गई. जूस, चाय, कौफी, स्नैक्स सबकुछ अपरिमित मात्रा में पेश किया जा रहा था.
एक बुर्कानशीन सभी महिलाओं के मेहंदी लगा रही थी. कुछ ही देर में बीच में बने मंच पर अरबी नृत्य आरंभ हो गया. घेरदार घाघरा पहने पुरुष लगातार गोलगोल घूमते 40 मिनट तक ‘तनूरा नृत्य’ करते रहे. फिर एक लड़की ने बैले नृत्य प्रस्तुत किया. शरीर का एकएक अंग उस ने तोड़मरोड़ कर रख दिया था. इस के बाद हम ने कैमल सफारी का आनंद लिया. बेटे ने सैंड पर स्पैशल बाइकराइड की. रंगबिरंगी रोशनी के बीच हम ने अरबी, भारतीय, सामिष और निरामिष भोजन का आनंद लिया.
यूएई जाने से पूर्व हमारे मन में यह डर बैठा हुआ था कि वहां सिर्फ नौनवेज और सीफूड ही मिलता है. लेकिन सब मिथ्या साबित हुआ. हमें हर जगह हमारी पसंद का शाकाहारी नाश्ता, खाना मिला. यहां तक कि एक दिन ‘मिनी पंजाबी’ रैस्तरां में हम ने पारंपरिक राजस्थानी थाली भी खाई. कढ़ी, खिचड़ी, बाजरे की रोटी, गुड़, छाछ, गट्टा करी, दालआलू, खमण, सिवइयों की खीर आदि का हम ने छक कर आनंद उठाया.
शौपिंग का आनंद
30 जून, 2013. लंच के पहले का हमारा समय शौपिंग के लिए नियत था. दुबई अपने गोल्ड और इलैक्ट्रौनिक्स आइटम्स के लिए विश्वविख्यात है. वहां के ये उत्पाद क्वालिटी में अव्वल और कीमत में कम होते हैं. हम ने 1 लैपटौप, 2 टैबलेट और 1 मोबाइल खरीदा. 
बच्चों के चेहरे मनपसंद उपहार पा कर खुशी से दमक रहे थे. लंच के बाद हम मीना ज्वैलर्स गए. वहां सोने की ढेरों वैरायटी थीं. व्हाइट, कौपर, गोल्ड, 18 कैरेट, 21 कैरेट, 22 कैरेट. एक स्क्रीन पर सोने के घटतेबढ़ते दाम डिस्प्ले हो रहे थे.
दुबई के सोने के बारे में यह विख्यात है कि विश्व के किसी भी कोने में उस की शुद्धता की परख करा ली जाए और उस में .01 प्रतिशत भी खोट निकल जाए तो जिस दुकान से वह खरीदा गया था वह सीज हो जाती है. इसलिए हम ने बिना किसी भय के अपनी पसंद की ज्वैलरी खरीदी. ज्वैलरी में इतनी वैरायटी और वह भी थोक के भाव से मैं पहली बार देख रही थी.
आज के डिनर का आयोजन कू्रज पर था. रंगबिरंगी रोशनी में जगमगाते कू्रज पर हमारा भव्य स्वागत हुआ. फिर हम लोगों ने जम कर केक और डिनर का लुत्फ उठाया.
दूसरे दिन सुबह होटल से बे्रकफास्ट करने के बाद गाड़ी हमें स्नोपार्क ले गई. बाहर तापमान 40 डिगरी था और अंदर था -4 डिगरी. गमबूट्स, जैकेट्स, ग्लव्स, टोपियां पहन कर हम सैंड, कू्रज के बाद अब बर्फ की सवारी के लिए तैयार थे. वहां स्लाइड, ट्यूब, स्ंिवग के साथसाथ हम ने एकदूसरे पर बर्फ फेंकने का भी खूब आनंद उठाया. एक छोटे से पूल के इर्दगिर्द कई पैंगविन भी घूमती नजर आईं.
अब वक्त था दोस्तों, रिश्तेदारों के लिए उपहार खरीदने का. हम ने कई सारी दुकानें देखीं. परफ्यूम, डियो, घडि़यां, कौस्मैटिक्स, चौकलेट्स आदि खरीदे. आश्चर्य की बात थी कि कुछ दुकानों में भरपूर मोलभाव हो रहा था तो कुछ में एकदम फिक्स्ड प्राइस था. कहना मुश्किल था कि हम घाटे में रहे या लाभ में. लेकिन भारत लौटने पर जब सभी ने दिल खोल कर तोहफों को सराहा तो हमें सुकून हो गया कि हम लाभ में ही रहे.
उस के बाद 2 जुलाई को बे्रकफास्ट के बाद हम अटलांटिस पाम में शिफ्ट हो गए थे. यह 7 स्टार होटल अपनेआप में एक अलग दुनिया है. एक कंपलीट एंटरटेनमैंट पैकेज - डौल्फिन बे, द लौस्ट चैंबर फिश एक्वेरियम, जहां 65 हजार किस्मों के समुद्री जीव और मछलियां हैं, एक्वावैंचर वाटरपार्क जहां एकसाथ 5 हजार लोग पूल ऐक्टिविटी का आनंद उठा सकते हैं, मोनो रेल, स्वीमिंग पूल्स, स्पा जकूजी क्लब, रौयल बीच, सैफ्रौन और कैलोडियोस्केम जैसे रेस्तरां,? जहां बे्रकफास्ट में हमें 418 डिशेज पेश की गईं. कमरे में घुसते ही बड़ी सी टीवी स्क्रीन पर अपने नाम का स्वागत संदेश पढ़ कर दिल खुश हो गया था.
वहां चलने वाली मोनो रेल से हम ने पूरा दुबई देखा. रौयल बीच और ऐक्टिविटी पूल में नहाने का आनंद लिया. कांच की बड़ीबड़ी दीवारों के पार तरहतरह की मछलियां, समुद्री जीव देखे. नाइट क्लब में पाश्चात्य परिधान में संगीत की धुन पर थिरके. एक्वावैंचर में ढेर सारे वाटर स्पोर्ट्स का आनंद उठाया. स्पा और फिटनैस सैंटर में जा कर अपनी थकान मिटाई. होटल की ग्रांड लौबी में बैठ कर झरनों और पिआनो का लुत्फ उठाया. इस होटल में 3 हजार लोगों का स्टाफ है जो 42 देशों से हैं और 68 विभिन्न तरह की भाषाएं बोलते हैं.
होटल से विदाई के वक्त एक खूबसूरत बाला हमारे कमरे में उपस्थित हुई और हमें मुबारकबाद देते हुए एक खूबसूरत सा नजराना थमा कर चली गई. खोलने पर उस में से ढेर सारे स्विस चौकलेट्स निकले. दिल्ली पहुुंच कर हम ने अपनी घडि़यां फिर से 1.30 घंटा आगे कर ली थीं. पर दिल और दिमाग शायद वहीं कहीं पीछे छूट गया था.   

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