वैज्ञानिक अब पहले से डिजाइन किए गए बच्चों के जन्म की तकनीक विकसित करने की कोशिश में जुटे हैं. ऐसा नहीं है कि यह अभी सोच के स्तर पर ही है. जानवरों में इस तरह के प्रयोग सफल होने के बाद आदमी में भी इस तरह का प्रयोग करने पर बातें हो रही हैं.

यह मानव जीन को इच्छानुसार संपादित करने की तकनीक है. इसे 'क्रिस्पआर' नाम दिया गया है. वाशिंगटन में इस पर वैज्ञानिकों का सम्मेलन भी हुआ.

दरअसल, मानव भ्रूण में डीएनए में बदलाव से अच्छी चीजें संभव हैं तो कई तरह की आशंकाएं भी हैं. अच्छा यह है कि इससे कई किस्म के रोगों पर पहले ही नियंत्रण पाना संभव होगा. थैलेसीमिया और कुछ खास कोशिकाओं तक रक्त पहुंचने में बाधा वाले रोगों से बचने के लिए यह तकनीक लगभग वरदान की तरह है.

जो भी रोग जेनेटिक हैं, उन पर इस तकनीक से जन्म से पहले ही सुधार संभव हो सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि बुद्धिमान होने के लिए 'सही जीन्स' और 'सही वातावरण' की ही जरूरत नहीं होती, बल्कि "जीन्स के सही सम्मिलन" की भी जरूरत होती है.

किस जीन की क्या विशेषता है, इस पर पिछले दस साल में अलग-अलग काफी जानकारियां जुटाई गई हैं. फिर भी वैज्ञानिक इस पर एक राय नहीं हो पाए हैं कि इनके सम्मिलन से क्या होता है या क्या कुछ हो सकता है.

वाशिंगटन सम्मेलन में मानव जीन में बदलाव के मेडिकल, सामाजिक, पर्यावरणीय और नैतिक परिणामों पर वैज्ञानिकों ने और बात करने पर जोर दिया. यूनेस्को अंतरराष्ट्रीय जैवनैतिकता समिति ने भी इसे 'संवेदनशील' मामला बताया है.

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