डीएनए के जरिए वल्दियत का सहीसही पता लगाया जा सकता है. यानी वल्दियत जांचने के लिए डीएनए जांच एक सटीक जरिया है. जहां पारंपरिक सुबूत नहीं होते या कोई झूठ बोलने पर उतारू हो तो वहां एकमात्र डीएनए जांच ही सहारा होती है, जिस से दूध का दूध और पानी का पानी साफ हो जाता है.

गौरतलब है कि 1995 में दिल्ली की नैना साहनी को उस के पति ने हत्या कर के तंदूर में झोंक दिया. हालांकि लाश पूरी तरह से खाक नहीं हो पाई, उस के पहले ही एक पुलिसवाले द्वारा सतर्कता के चलते लाश को तंदूर से निकाल लिया गया. लेकिन लाश में कोई भी अंग न तो साबुत था और न ही उसे पारंपरिक तरीके से पहचाना जा सकता था.

समस्या यह थी कि उस लाश को नैना साहनी की लाश कैसे माना जाए? इस जटिल मामले को कोई मंझा हुआ जासूस भी नहीं सुलझा सकता था क्योंकि नैना साहनी की तंदूर में जलने से बची जो लाश हासिल हुई थी, वह महज जलाभुना हड्डियों का एक कंकाल भर था.

ऐसे में यह जिम्मेदारी हैदराबाद स्थित सैंटर फौर मौलिक्यूलर बायोलौजिकल स्टडीज के डीएनए प्रिंट विभाग के तत्कालीन निदेशक लालजी सिंह को सौंपी गई. लालजी सिंह के नेतृत्व में फोरैंसिक वैज्ञानिकों के एक दल ने नैना साहनी की जलीभुनी हड्डियों से कुछ ऊतकों को इकट्ठा किया. इस के बाद शुरू हुई डीएनए फिंगरप्रिंटिंग जांच. लगभग 1 महीने बाद ही लालजी सिंह ने यह सिद्ध कर दिया कि वास्तव में जला हुआ शरीर नैना साहनी का ही था.

प्रामाणिकता

एकदो नहीं, बल्कि अब तक देशभर में सैकड़ों ऐसे मामलों में जहां या तो स्पष्ट सुबूत नहीं थे या दूसरे पेच थे, उन्हें डीएनए जांच के जरिए ही सुलझाया जा सकता है. हर व्यक्ति के डीएनए की बनावट, उंगलियों की बनावट की ही तरह एकदूसरे से बिलकुल भिन्न होती है. 2 अलगअलग व्यक्तियों के डीएनए का एक जैसा होना

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