अक्सर बच्चों को हंसाने के लिए गुदगुदी करना पड़ती है. बच्चे नहीं बड़ेबड़े भी गुदगुदी करने पर खिलखिला कर हंस पड़ते हैं. शरीर में यह सब हार्मोंस और सैंसटिविटी के कारण होता है. वैज्ञानिकों ने इस के कारणों का पता लगाया है कि क्या कारण है कभीकभी बिना किसी को छुए सिर्फ हंसाने का दूर से इशारा करने पर ही वह खिलखिलाने लगता है.

शरीर में गुदगुदी 2 तरह से होती है, निसमेसिस और गार्गालेसिस. निसमेसिस में जब कोई शरीर की त्वचा को हलके से स्पर्श करता है या किसी हलके पंख से धीरेधीरे सहलाए, यह संदेश त्वचा की बाहरी सतह पर मौजूद असंख्य स्पर्श कोशिकाएं मस्तिष्क तक भेजती हैं और हमें त्वचा पर हलकीहलकी खुजली का आभास होता है. गार्गालेसिस में व्यक्ति के पेट या गले पर उंगलियों से छूने पर वह खिलखिला कर हंसता है.

हमारे दिमाग में कुछ इस तरह से प्रोग्राम होता है कि उस में बाहरी संवेग और आंतरिक संवेगों को अलग करने में महारत हासिल होती है. दिमाग सब से पहले उन संकेतों की अनदेखी करता है जो आंतरिक होते है यानी जो व्यक्ति स्वयं अपने शरीर पर करता है. जब भी कोई व्यक्ति हमें गुदगुदी करता है तो हमें हंसी उस के कारण होने वाले आकस्मिक भय का ही रूप होती है.

जरमन वैज्ञानिकों के मुताबिक, गुदगुदी दिमाग के उस हिस्से को सक्रिय करती है जिस से व्यक्ति को दर्द का एहसास होता है, इसीलिए गुदगुदी करते ही या उस से पहले व्यक्ति सतर्क हो जाता है. यही कारण है कि बेहद गुस्से में व्यक्ति को गुदगुदी करने पर हंसी नहीं आती. जब हम स्वयं अपने को गुदगुदाते हैं तो हमें किसी भी प्रकार का भय नहीं रह जाता है. अपनेआप को गुदगुदाने पर यह प्रतिक्रिया दिमाग के जिस हिस्से के कारण नहीं हो पाती है, उसे ‘सेरेबेलम’ कहते हैं और यह दिमाग के पिछले हिस्से में होता है. यह दिमाग के अन्य हिस्सों को मिलने वाले संवेदात्मक संकेतों को नियंत्रित करता है. गुदगुदी करने पर हंसना दिमागी परिस्थिति पर निर्भर करता है.

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