ज्यादातर ऐप्स साइन अप कराने से पहले उपयोगकर्ता की पर्सनल डिटेल्स मांगती हैं. जैसे यूजर्स या उपयोगकर्ता की उम्र, जन्म तिथि, ईमेल पता और फोन नंबर. यूजर्स इन डिटेल्स को मैन्युअल रूप से दर्ज कर सकते हैं या यूजर्स उन ऐप्स को सोशल नेटवर्क जैसे कि गूगल, फेसबुक या ट्विटर पर उपलब्ध डाटा का उपयोग करने की अनुमति दे सकते हैं. जिसके द्वारा ऐप्स को आपको बार-बार साइन इन करने की जरुरत नहीं होती.

इस प्रोसेस को सोशल लौग-इन के रूप में भी जाना जाता है और स्मार्टफोन यूजर्स आसानी से लॉग इन कर पाते हैं. इसके अलावा इस प्रोसेस से यूजर्स को बार-बार लौग इन होने के झंझट से मुक्ति मिलती है और समय की भी बचत होती है.

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस तरह से लौग इन करने पर आपकी प्राइवेसी को खतरा होता है. इसके साथ आपकी प्राइवेट डिटेल्स की जानकारी इन ऐप्स को मिल जाती है. ऐप डेवलपर्स यूजर्स के परमिशन के बिना नए तरीकों से अन्य ऐप्स तक पहुंच प्राप्त करने का प्रयास करते हैं.

यूजर्स की पर्सनल डिटेल्स की रखते है जानकरी

हाल ही के एक अध्ययन में पता चला है कि प्ले स्टोर पर हजारों एप्लिकेशन यूजर्स की संवेदनशील जानकारी तक पहुंचने की कोशिश करते है. इसके अलावा ये ऐप्स यूजर्स की निजी जानकरियों को दूसरे ऐप्स के साथ साझा करते हैं, जिन्हें उपयोगकर्ता की अनुमति के बिना साझा किया जाता है. सोशल मीडिया अकाउंट के माध्यम से इन ऐप्स को लौग इन करने का मतलब है कि आप अपनी निजी जानकारियों को खुद उन ऐप्स को दे रहे हैं.

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