पल्लवी और प्रज्ञा की कुछ दिन पहले ही मित्रता हुई थी. एक दिन स्कूल से घर लौटते समय प्रज्ञा ने पल्लवी को अपने घर चलने के लिए कहा तो पल्लवी अपनी असमर्थता जताती हुई बोली, ‘‘नहीं, आज नहीं. मैं फिर किसी दिन आऊंगी.’’

‘‘आज क्यों नहीं? तुम्हें आज ही चलना होगा,’’ प्रज्ञा जिद करती हुई आगे बोली, ‘‘हमारे गराज में आज सुबह ही क्रोकोडायल ने 3 बच्चे दिए हैं.’’ क्रोकोडायल प्रज्ञा की पालतू पामेरियन कुतिया का नाम था.

‘‘2 सुंदरसुंदर सफेद और एक काला चितकबरा है,’’ प्रज्ञा हाथों को नचाते हुए पिल्लों की सुंदरता का वर्णन करने लगी.

‘‘अच्छा, तब तो मैं उन्हें देखने कल जरूर आऊंगी.’’

‘‘जरूर आओगी न?’’

‘‘वादा रहा,’’ कहती हुई पल्लवी अपने घर की ओर जाने वाली गली में मुड़ गई. दूसरे दिन शाम को पल्लवी प्रज्ञा के घर पहुंची. पल्लवी का हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए प्रज्ञा उसे अपने गराज की ओर ले गई, ‘‘देखो, हैं न सुंदरसुंदर पिल्ले? बताओ इन का क्या नाम रखें?’’ अपनी सहेली की ओर देखती हुई प्रज्ञा ने अपनी गोलगोल आंखें मटकाते हुए पूछा.

‘‘आहा, इतने सुंदर पिल्ले? नाम भी इन के इतने ही सुंदर होने चाहिए,’’ कुछ सोचती हुई पल्लवी काले चितकबरे  पिल्ले की ओर इशारा करती हुई बोली, ‘‘इस का नाम ‘ब्राउनी’ ठीक रहेगा.’’

‘‘हां, बिलकुल ठीक. इन दोनों का नाम ‘व्हाइटी’ और ‘ब्राउनी’ रख लेते हैं.’’ दोनों सहेलियां पिल्लों को प्यार करने में मग्न थीं. पल्लवी सफेद पिल्ले ‘व्हाइटी’ को गोद में उठा कर पुचकार रही थी कि व्हाइटी झट से अपनी मां की ओर कूद गया और चपरचपर अपनी मां का दूध पीने लगा. यह देख प्रज्ञा पिल्ले की पीठ सहलाती हुई कहने लगी, ‘‘भूख लगी है तुझे व्हाइटी? ठीक है, जा दूध पी ले अपनी मां का.’’ इतने में प्रज्ञा को मां ने आवाज दी पर प्रज्ञा ने सुन कर भी अनसुना कर दिया. यह देख पल्लवी बोली, ‘‘प्रज्ञा, तुम्हें तुम्हारी मां पुकार रही हैं.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...