होली पर सोनू व मोनू के जीजाजी पहली बार अपनी ससुराल आ रहे थे. सोनूमोनू थे तो करीब 13 और 14 साल के ही, पर शैतानियों में बड़ेबड़ोें के कान काटते थे. दोनों ने निश्चय किया कि जीजाजी से ऐसी होली खेलनी है कि वे इसे जिंदगी भर न भूल पाएं. इस बारे में दोनों भाई रोज तरहतरह की योजनाएं बनाते रहते.

आखिर होली के 4 दिन पहले  ही जीजाजी आ गए. जीजाजी ने आते ही सब को बता दिया कि उन्हें रंगों से सख्त नफरत है. वे केवल धुलेंडी के दिन ही होली खेलेंगे और वह भी केवल सूखे रंगों से.

सनूमोनू के पिताजी ने अपने लाड़लों की शैतानियों को ध्यान में रखते हुए दोनों को चेतावनी दी, ‘‘देखो बच्चो, तुम्हारे जीजाजी को गीला रंग पसंद नहीं है इसलिए उन पर रंग मत डालना.’’

‘‘नहीं डालेंगे, पर अगर रंग इन के ऊपर अपनेआप लग गया तो?’’ दोनों ने एकसाथ पूछा.

‘‘अरे वाह, रंग अपनेआप मुझ पर कैसे गिरेगा? क्या रंग कोई जादू है?’’ जीजाजी बोले.

‘‘तो ऐसा है कि...’’ सोनू कुछ बोल ही रहा था कि उस के पिताजी ने बीच में ही टोका, ‘‘बस, तुम लोग रंग मत डालना. रंग अपनेआप लग जाए तो लगने देना. तब तुम लोगों का कोई कुसूर नहीं होगा. बस, तुम अपने वादे पर अटल रहना.’’

‘‘हम वादा करते हैं कि जीजाजी पर रंग नहीं डालेंगे,’’ दोनों बोले.

जीजीजी प्रसन्न हो उठे. दूसरे दिन सोनूमोनू ने जीजाजी के साथ जरा भी शरारत नहीं की. दोनों ध्यान से दिनभर जीजाजी की दिनचर्या देखते रहे तथा गुपचुप अपना कार्यक्रम उसी हिसाब से तय करते रहे. दोनों ने दिनभर कोई शैतानी नहीं की खूब घुलमिल कर जीजाजी से बातें करते रहे. इस से जीजाजी की नजर में वे अच्छे बच्चे बन गए. जीजाजी अपनी दिनचर्या के अनुसार सुबह उठ कर अधमुंदी आंखों से पलंग के पास रखी कुरसी पर बैठ जाते और चाय पीते. उस के बाद घर के पीछे वाले छोटे बगीचे में थोड़ी देर टहलते, फिर नहाते. तीसरे दिन जीजाजी पलंग से उठ कर ज्यों ही कुरसी पर बैठे तो चौंक कर इस तरह उछले जैसे सांप पर बैठ गए हों. वहां कुरसी पर रंगीन पानी से भरे रबड़ के कई गुब्बारे रखे हुए थे. जीजाजी के बैठने से कई गुब्बारे फूट गए और जीजाजी नीचे से एकदम रंगीन हो गए.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...