‘एक दिन अचानक पूजा उस के घर आई तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. वह पूजा को पहचानता था, वह उस के पड़ोस में ही रहती थी. परंतु उस के साथ कभी कोई बात नहीं होती थी. कारण, वह बहुत संकोची था और पूजा अपनेआप में मस्त रहने वाली लड़की. वह शर्मीली लड़की की तरह पूजा के घर के सामने से सिर झुका कर गुजर जाता. अकसर उस ने पूजा को अपने घर से बाहर अपनी सहेलियों से बातें करते हुए देखा था. कई बार उस ने महसूस भी किया कि वे सभी उस की तरफ कुछ इशारा कर के हंसती थीं. यह उस का भ्रम भी हो सकता था, परंतु संकोचवश वह तुरंत उन के सामने से हट जाता और घर आ कर अपनी तेज सांसों पर काबू पाने का प्रयास करता. वह पूजा की हंसी और मुसकराहट का अर्थ आज तक समझ नहीं पाया था. आज जब पूजा उस के घर आई और उसे देख कर बड़ी अदा से मुसकराई तो उस के दिल पर मानो बिजली गिर गई हो. लड़कियों को देख कर वैसे ही उस के हाथपैर कांपने लगते और मुंह लाल हो जाता था. पूजा को अपने घर पर देख कर उस के दिल की धड़कन और भी बढ़ गई थी.

घर पर उस की मां थीं, छोटी बहन थी और रविवार होने के कारण उस के पिता भी घर पर ही थे. वे लोग उस के बारे में क्या सोचेंगे? उस ने मुड़ कर अपने कमरे की तरफ भागने का प्रयास किया ही था कि पूजा की मधुर आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘भाग रहे हो? अपने ही घर में भाग कर कहां छिपोगे?’’ पूजा पहली बार उस से ऐसे बोली थी. वह ठिठक कर खड़ा हो गया, सचमुच वह अपने घर से भाग कर कहां जाएगा? उस ने पूजा के प्रफुल्लित चेहरे को बच्चे की तरह देखा और मन ही मन कहा, ‘तुम यहां क्या मेरी दुर्गति करने के लिए आई हो?’

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