आभास पटना घूमने आया था. वह पटना से 20 किलोमीटर दूर फतुहा का रहने वाला था.

फतुहा पटना का सैटेलाइट टाउन है. वहीं के हाईस्कूल से उस ने मैट्रिक पास की थी, पर 12वीं जमात में फेल हो जाने के बाद उस के पिता ने उस की पढ़ाई छुड़वा कर अपने कारोबार में लगा दिया.

आभास के पिता नंदू का मछली का थोक कारोबार था. वह पिता के साथ पटना आया था. वहां गंगा किनारे बने गोलघर के ऊपर चढ़ कर दूर तक फैली हुई गंगा नदी और शहर को आंखें फाड़ कर देख रहा था.

उसी दिन आभास से थोड़ी ही दूर पर खड़ी आभा भी गोलघर की ऊंचाई से शहर का नजारा देख रही थी. उस के पिता पूरी सीढि़यां चढ़ नहीं सके, तो आभा को ऊपर भेज कर वे खुद बीच में ही थक कर बैठ गए. आभा आभास से एक क्लास जूनियर थी.

अचानक आभास की नजर आभा पर पड़ी, तो वह बोला, ‘‘क्यों री छबीली, तू यहां भी?’’

आभा बोली, ‘‘यह तेरे फतुहा का नुक्कड़ नहीं है. यहां पर तेरी दादागीरी नहीं चलेगी.’’

आभास के पिता नंदू बिहार सरकार की डेरी का फ्रैंचाइज लेने आए थे, जो उन्हें मिल गई थी. आभास उम्र में आभा से 5 साल बड़ा था. आभा के पिता स्कूल मास्टर थे. उन की 2 बेटियां थीं, आभा और विभा. दोनों ही बहुत खूबसूरत थीं, पर आभा जरा ज्यादा खूबसूरत थी.

आभा के पिता अपनी पत्नी से कहा करते, ‘मेरी बेटियां बिलकुल राजकुमारी जैसी हैं. मैं उन के लिए राजकुमार जैसे लड़के ढूंढूंगा.’

नंदू ने आभास को अपने मछली के कारोबार में लगा रखा था. मछली और डेरी दोनों से अच्छी कमाई हो जाती थी.

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