मनोज हर दिन जिस मिनी बस में बैठता था, उसी जगह से लक्ष्मी भी बस में बैठती थी. आमतौर पर वे एक ही बस में बैठा करते थे, मगर कभीकभार दूसरी में भी बैठ जाते थे.

उन दिनों उन के बस स्टौप से सिविल लाइंस तक का किराया 4 रुपए लगता था, मगर लक्ष्मी कंडक्टर को 3 रुपए ही थमाती थी. इस बात को ले कर उस की रोज कंडक्टर से बहस होती थी, मगर उस ने एक रुपया कम देने का जैसे नियम बना ही लिया था.

कभीकभार कोई बदतमीज कंडक्टर मिलता, तो लक्ष्मी को बस से उतार देता था. वह पैदल आ जाती थी, पर एक रुपया नहीं देती थी.

लक्ष्मी मनोज के ही महकमे के किसी दूसरे सैक्शन में चपरासी थी. एक साल पहले ही अपने पति की जगह पर उस की नौकरी लगी थी.

लक्ष्मी का पति शंकर मनोज के महकमे में ड्राइवर था. सालभर पहले वह एक हादसे में गुजर गया था. लक्ष्मी की उम्र महज 25 साल थी, मगर उस के 3 बच्चे थे. 2 लड़के और एक लड़की.

एक दिन मनोज पूछ ही बैठा, ‘‘लक्ष्मी, तुम रोज एक रुपए के लिए कंडक्टर से झगड़ती हो. क्या करोगी इस तरह एकएक रुपया बचा कर?’’

‘‘अपनी बेटी की शादी करूंगी.’’

‘‘एक रुपए में शादी करोगी?’’ मनोज हैरान था.

‘‘बाबूजी, यों देखने में यह एक रुपया लगता है, मगर रोजाना आनेजाने के बचते हैं 2 रुपए. महीने के हुए 60 रुपए और सालभर के 730 रुपए. 10 साल के 7 हजार, 3 सौ. 20 साल के 14 हजार, 6 सौ.

‘‘5 सौ रुपए इकट्ठे होते ही मैं किसान विकास पत्र खरीद लेती हूं. साढ़े 8 साल बाद उस के दोगुने पैसे हो जाते हैं. 20 साल बाद शादी करूंगी, तब तक 40-50 हजार रुपए तो हो ही जाएंगे.’’

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