सुबह. नीले आकाश में उड़ रही चिडि़या. आजाद. लोहे का बड़ा वाला फाटक  बंद है. ताकि बच्चों के अभिभावक स्कूटरबाइक ले कर स्कूल के अंदर तक न चले आएं. दाहिने, पिंजड़े के दरवाजे की तरह एक छोटा सा पल्ला खुला है. बगल में खाकी वरदी में रामवृक्ष दरबान खड़ा है. सभी मैडम गंभीर मुद्रा में अपनाअपना सिर तान कर या झुका कर छोटे वाले गेट से अंदर दाखिल हो रही हैं. छोटे बच्चे तो उछलतेकूदते पिंजड़े के भीतर घुसे जा रहे हैं. मगर दरजा 6-7 के 2-4 बच्चों का सिर अंदर जाते समय दरवाजे के फ्रेम से टकरा गया, आउच, हिंदीकोश में एक नया अव्यय.

फिर भी वे खुश हो गए, ‘पंकज देख, मेरी हाइट कितनी हो गई है. तू तो ठिगना का ठिगना ही रह गया.’ स्कूल के सामने स्कूटर और बाइक की जमघट. दोएक रिकशा भी आ कर सवारी उतार कर चलते बन रहे हैं. कोई बच्चा पापा से पितृकर वसूल रहा है चिप्स खाने के लिए, तो किसी के पिताश्री जेब से कंघी निकाल कर बच्चे के बाल संवार रहे हैं.

प्रयाग ने अपनी बाइक एक किनारे खड़ी कर दी. बेटे को गोद में ले कर पिछली सीट से उसे नीचे उतारते, इस के पहले ही पुलकित बाइक से कूद गया.‘‘अरे रे रे बेटा, इतनी भी जल्दी क्या है, कहीं गिर गया तो? तेरी मम्मी मुझे ही डांटेगी,’’ प्रयाग कहते रह गए.

अभी तो हफ्ताभर भी नहीं हुआ उस का एडमिशन हुए. पुलकित है तो चंचल. दिनभर घर में दादा और चाचा को दौड़ाता रहता है. पर स्कूल नाम केइस पिंजड़े के अंदर जाते ही वह एकदम शांत हो जाता है. यहां वह बिलकुल अकेला जो है. अभी दोस्तों से घुलमिल जो नहीं पाया.  प्रयाग ने सोचा, बेटे को स्वनिर्भर बनाना है. यह क्या कि रोज डैडी का हाथ थाम कर स्कूल के दरवाजे तक जाए. स्कूलबैग तो पुलकित की पीठ पर था ही. उन्होंने बाइक की हैंडिल से वाटर बौटल निकाल कर उस के हाथ में थमा दिया, ‘‘टाटा बेटा. मम्मी ने कहा था न कि आज से तुम अकेले ही स्कूल के अंदर चले जाओगे?’’

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