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थाने के करीब आते ही उस की चाल में धीमापन आ गया.  तेजतेज चलने से मेवा का कसा हुआ ब्लाउज पसीने से तरबतर हो कर गोलाइयों से चिपक गया था. सामने गेट पर बड़ीबड़ी मूंछों वाला संतरी खड़ा था. उस की कामुक नजरें मेवा के बदन से चिपके ब्लाउज पर फिसल रही थीं. उस ने सुलगती बीड़ी का गहरा कश भरा और धीरेधीरे चलता हुआ डरीसहमी मेवा के करीब आ गया. यह देख मेवा घबरा गई. उस की काली चमकती आंखों में दहशत भर उठी थी. उस ने कई जवान औरतों से सुना भी था कि पुलिस वाले बहुत बदमाश होते हैं. फिर भी डरते हुए वह थाने तक आ गई थी.

पुलिस वाले की प्यासी नजरें उस की गदराई जवानी पर फिसल रही थीं.

‘‘यहां क्यों आई है. मुझे बता.’’

वह वहीं चुपचाप खड़ी रही.

‘‘अरे, बोलती क्यों नहीं? गूंगी है क्या?’’ सामने खड़े पुलिस वाले ने कड़कती आवाज में पूछा, ‘‘किसी ने तंग किया है तुझ को? बता मुझे.’’

‘‘थानेदार साहब, ऐसा नहीं है,’’ मेवा ने कांपती आवाज में कहा.

‘‘फिर रास्ते में अकेली देख कर किसी ने पकड़ लिया होगा? तू डर मत, मुझे साफसाफ बता दे. एक घंटे बाद मेरी ड्यूटी खत्म हो रही है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है थानेदारजी, मैं तो दूसरी फरियाद ले कर आई हूं जी,’’ मेवा सहज आवाज में बोली.

पुलिस वाला अभी जाल फेंक ही रहा था कि अंदर से असली थानेदार राम सिंह जीप स्टार्ट कर के निकला.

थानेदार राम सिंह जीप रोकते हुए  बोला, ‘‘अरे नफे सिंह, यह लड़की कौन है?’’

‘‘साहबजी, यह... यह...’’ पहरे पर खड़ा संतरी कुछ बोलता, उस से पहले ही मेवा ने कहा, ‘‘साहबजी, मैं हरिया की घरवाली हूं. उसे पुलिस ने पकड़ रखा है. हुजूर, मेरे हरिया को छोड़ दो. वह बेकुसूर है.’’

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