इलैक्ट्रौनिक अलार्म की अपेक्षाकृत मधुर आवाज उसे बहुत कर्कश लगी और उस की आंखें खुल गईं. उस ने पास सोए पति व बच्चों पर नजर डाली. सभी बेखबर खर्राटे ले रहे थे. उस के जी में आया वह भी उन्हीं की तरह सोई रहे. वह करवट बदल कर सोने की कोशिश करने लगी. लेकिन शीघ्र ही उसे एहसास हुआ कि उस के दैनिक जीवन में सुकून नाम की चीज नहीं रह गई है. थोड़ा सा अलसा कर उठने से अस्पताल पहुंचने में लेट हो जाएगी. जब उस के वरिष्ठ डा. मयंक उसे अपने चश्मे में से घूरेंगे तो उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा. लेट होने पर उस के मरीजों को भी असुविधा होती है. यही सब सोच कर वह अलसाती हुई उठ गई और पति व बच्चों को आवाज लगाई.

उठते ही वह तेज गति से दैनिक कर्मों से निवृत्त हो कर रसोई में पहुंची. जल्दीजल्दी पति व बच्चों का नाश्ता बनाने की तैयारी करने लगी. अपनी तमाम व्यस्तताओं में भी वह सुबह का नाश्ता अपने हाथों से ही बनाती थी. यों खाना बनाने वाली बाई थी लेकिन सभी की फरमाइश और स्वयं की इच्छा से वह इतना तो करती ही थी. फिर खाना बनाने वाली बाइयां भी कहां ढंग का खाना बनाती हैं. हर नई बाई के आने के बाद कुछ दिन तक तो सब ठीक रहता है लेकिन फिर सभी उस खाने से मुंह बनाने लगते हैं. पिछले हफ्ते जो बाई काम छोड़ कर गई उस का कहना था कि इतनी सुबह उस का पति उसे छोड़ता नहीं, इसलिए वह सुबह जल्दी काम पर नहीं आ सकती. उस ने सोचा, मुझ से तो वह बाई अच्छी है जो जल्दी न पहुंच पाने की वजह से काम छोड़ कर चली गई. लेकिन क्या वह ऐसा कर सकती है? फिर उसे खुद ही अजीब लगा कि वह अपनी तुलना किस से कर रही है. यही सब सोचते हुए उस की तंद्रा तब टूटी जब गैस पर रखी चाय उफन कर बाहर गिरने लगी.

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