पिछले अंक में आप ने पढ़ा

कि चुनावों के चलते सरकारी कर्मचारियों के लिए ड्यूटी पर तैनात होने के सरकारी फरमान से मानो कार्यालय में खलबली मच जाती है. सख्त आदेश के आगे ड्यूटी से बचने के सभी उपाय बेकार साबित हुए. भगतजी जैसे आरामपरस्त व्यक्ति के लिए ड्यूटी निभाना पहाड़ पर चढ़ने जैसा था. खैर, कर्तव्य निर्वाह हेतु जरूरत के साजोसामान सहित मतदान केंद्र जाने की तैयारी कर ली.

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शौचालय तो स्कूल में था लेकिन उस में सुविधा के स्थान पर टूटा फर्नीचर व अन्य कबाड़ भरा था. शौच क्रिया निबटाने के लिए खेत को ही शौच का कर्मक्षेत्र बनाना था. चुनाव अधिकारी की सख्ती का ही कमाल था कि अधिकतर लोगों ने पुलिसलाइन के बड़े मैदान में अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर नए परिचयपत्र प्राप्त कर लिए थे. अब वे नाम से नहीं पोलिंग पार्टी संख्या के नाम से जाने जा रहे थे. सभी को चुनावकर्मी कह कर संबोधित किया जा रहा था. वे भूलते जा रहे थे कि वे बैंककर्मी हैं. सभी को पता चल गया था कि किस की ड्यूटी किस चुनाव क्षेत्र में किस पोलिंग बूथ पर लगी है. ज्यादातर बैंककर्मियों को पीठासीन अधिकारी बनाया गया था और अन्य सहायकों के रूप में स्कूल अध्यापक और विभिन्न विभागों के चपरासी भी थे.

पंडालों की संख्या पर्याप्त न होने के कारण वे मैदान के किनारे खडे़े पेड़ों की छाया पर अपनाअपना कब्जा कर के चुनाव सामग्री का मिलान, छपी हुई सूची से कर रहे थे. जो लोग नहीं पहुंच पाए थे उन को नाम और विभाग के साथ लाउडस्पीकर से पुकारा जा रहा था. यह आदेश प्रसारित किया जा रहा था कि वे अपनीअपनी चुनाव सामग्री प्राप्त कर लें अन्यथा उन के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी जाएगी, जिस के गंभीर परिणाम उन लोगों को भुगतने पड़ सकते हैं. जिन्होंने चुनाव सामग्री प्राप्त कर के मिलान कर लिया हो, प्रस्थान करें. पोलिंग बूथ तक पहुंचाने और मतदान समाप्त होने पर वापसी का उचित और पर्याप्त प्रबंध किया गया है.

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