सुधीर सोच रहा था मां क्या सोचेंगी जब बैंक के संयुक्त खाते में उन्हें 50 हजार रुपयों की जगह केवल 400 रुपए मिलेंगे. शायद उन्हें इस बात का आभास हो जाएगा कि फर्ज की जिस किताब पर सुधीर नोटों का कवर चढ़ाता आ रहा था, उस कवर को शायद उस ने हमेशा के लिए फाड़ कर फेंक दिया है. सब लोग खर्राटे ले रहे थे लेकिन सुधीर की आंखों में नींद नहीं थी. न जाने अपने जीवन की कितनी रातें उस ने बिना सोए ही बिताई थीं अपने घर वालों के बारे में सोचतेसोचते.

‘‘हमारे मकान मालिक का लड़का 7 साल पहले लंदन पढ़ने गया था. उस ने घर वालों को उन के हाल पर छोड़ दिया है. बेटे का फर्ज कभी निभाया ही नहीं उस ने,’’ अपने बारे में सुरेंद्रजी के मुंह से यह सुन कर हैरान रह गया सुधीर.

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दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर पिताजी के अलावा सुधीर के स्वागत के लिए घर के सभी लोग आए थे. लंदन से उड़ान भर कर विमान रात को 3 बजे दिल्ली पहुंचा था. पिताजी के लिए इतनी रात में हवाई अड्डे पहुंचना काफी कठिन था. 5 साल पहले उन को पक्षाघात हो गया था. तभी से वे घर की चारदीवारी में कैद हो कर रह गए थे. पिताजी एक प्राइवेट कंपनी में ऊंचे पद पर काम करते थे. कंपनी वालों ने उन को काफी अच्छी रकम दी थी उन की लंबी सेवा के उपलक्ष्य में. सब्जीमंडी में पुश्तैनी घर की निचली मंजिल पर पिताजी का कब्जा था.

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