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ख्वाब

ख्वाब ही ख्वाब दिल में थे हकीकत में तो कुछ न था

नहीं मजबूत थे अरमा

जो अपनों से मिला देते

मेरे पैरों में भी वो ताकत नहीं थी

जो मंजिल से मिला देते

कि हुआ तो रूबरू उन से मगर

वो लफ्ज न निकले

वो लफ्ज कैद थे दिल में

जो उन से मिला देते

भटकती जिंदगानी में कभी

वो मुकाम न आया

कि जिस पर नाज करते हम

मुहब्बत में दुआ देते

कि ख्वाब ही ख्वाब दिल में थे

हकीकत में तो कुछ न था

हकीकत में जो कुछ होता तो

तुम को दास्तां सुना देते

सपने तो सुनहरे से हर पल साथ थे मेरे

मगर वो हालात न पाए

कि जंजीरें हटा मेरी

जो मेरे पंखों से मिला देते

अमीरी और गरीबी का मुझे

एहसास हर पल था

न देखा होता तुम्हें महलों में तो

दिल से दिल मिला देते.

                  - मनीषा जोशी

 

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गाढ़ी नींद में ख्वाबों को सजाने का

होंठों की जुंबिश के राज बताने का

तुम्हारी आंखों से जिगर में समाने का

तुम्हारी आतीजाती सांसों में सिमट जाने का

मैं ने वर्षों ख्वाब नहीं देखा है

ऊंची परवाज पे आकाश में बांहें फैलाने का

तितलियां बन फूलों पे मुसकराने का

तुम्हारे नाम,

तुम्हारी कई कशमकश चुराने का

ख्वाबों में तुम्हें उठा कर हालेदिल सुनाने का

मैं ने वर्षों ख्वाब नहीं देखा है

आओ हम तपिश में छांव बछाएं

तपती धरती में हरी घास लगाएं

यहां मजलूमियत और भूख मिटाएं

नई फसलें उगा परिंदों को लाएं

मैं ने वर्षों ख्वाब नहीं देखा है

हमारी जैसी कई जगीं अलसाई रातें

सितारों को जमीं पे इशारे से बुलाई रातें

रात और सुबह की आमद कराती रातें

बोझिल पलकों पे शरमाती रातें

पलकों पे ठंडी हथेली रखने को बुलाती रातें

मैं ने वर्षों ख्वाब नहीं देखा है.

                  - डा. के पी सिंह

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