जून का अंतिम सप्ताह और आकाश में कहीं बादल नहीं. अभय को आज हर हाल में रामपुर पहुंचना है वरना ऐसी गरमी में वह क्यों यात्रा करता? वह तो स्टेशन पहुंचने से ले कर रिजर्वेशन चार्ट में अपना नाम ढूंढ़ने तक में ही पसीनापसीना हो गया. पर अपने फर्स्ट क्लास एसी डब्बे में पहुंचते ही उस ने राहत की सांस ली. सामने की सीट पर एक सुंदर महिला बैठी थी. यात्रा में ऐसे सहयात्री का सान्निध्य अच्छा लगता है.

‘‘सामान सीट के नीचे लगा दो,’’ अभय ने पानी की बोतल को खिड़की के पास की खूंटी से टांगते हुए कुली से कहा.

अभय ने महिला को कनखियों से देखा. वह एक बार उन लोगों को उचटती नजर से देख कुछ पढ़ने में व्यस्त हो गई है. इस बीच कुली ने सामान सीट के नीचे रख दिया. जेब से पर्स निकाल कर कुली को मुंहमांगी मजदूरी के साथसाथ अभय ने 10 रुपए बख्शिश भी दी. कुली के डब्बे से उतरते ही गाड़ी ने रेंगना शुरू कर दिया. गाड़ी स्टेशन, शहर पीछे छोड़ती जा रही थी. अब बेफिक्र हो कर अभय ने पूरे डब्बे में नजर दौड़ाई. पूरे डब्बे में सिर्फ वे दोनों ही थे. ऐसा सुखद संयोग पा कर अभय खुश हो उठा. थोड़ी देर बाद अपने जूते उतार कर, बाल संवार कर वह बर्थ पर इस प्रकार टेक लगा कर बैठा कि उस महिला को भलीभांति निहार सके. महिला वास्तव में सुंदर थी. वह लगभग 34-35 वर्ष की तो रही होगी पर देखने से काफी कम आयु की लग रही थी.

अभय उस महिला से संवाद स्थापित करने हेतु व्यग्र हो उठा. पर महिला अपने आसपास के वातावरण से बेखबर पढ़ने में व्यस्त थी. उस की बर्थ पर एक ओर कई समाचारपत्र और पत्रिकाएं रखी हुई थीं और वह एक पुस्तक खोले उस से अपनी नोटबुक में कुछ नोट करती जा रही थी.

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