‘मां मैंने ठान लिया है कि मैं अभिनेत्री ही बनूंगी. अच्छा होगा आप और पापा भी मेरे इस निर्णय में मेरा साथ दो. वैसे भी जब मैं ने निर्णय ले ही लिया है तो करूंगी तो मैं वही,’’ रूहानी का सुर सख्त था. वह शुरू से अडि़यल रही थी. बड़ा होने के साथ, जल्द से जल्द पैसा और शोहरत पाने की धुन ने उसे और भी कठोर बना दिया था. मातापिता का उस के निर्णय में साथ देने या न देने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था. जब से उस की एक सहेली ने उसे एक एजेंट से मिलवाया था और उस एजेंट ने रूहानी को टैलीविजन पर उच्च कोटि की अभिनेत्री बनवाने के सुनहरे ख्वाब दिखाए थे, तब से रूहानी लगातार वही सपना देख रही थी. वह एजेंट भी लगभग रोज ही उसे फोन करता और जल्दी नोएडा पहुंचने को कहता. रूहानी भी उसी समय अपने मातापिता से जिद करने लगती.

‘‘मैं कहती हूं जी, यदि हम रूहानी को अपने साथ, अपने पास रखना चाहते हैं, तो हमें उस का साथ देना चाहिए वरना 18 वर्ष की तो वह हो ही गई है... घर छोड़ कर चली गई तो हम क्या कर पाएंगे?’’ उस की जिद के आगे मां ने हार मान ली थी. अब वे अपनी बेटी को खोना नहीं चाहती थीं, इसलिए उस के पिता को समझाबुझा रही थीं.

‘‘क्या तुम जानती नहीं हो कि वह कैसी दुनिया है... जितनी चकाचौंध है, उतना ही तनाव भी... जितना पैसा है, उतनी ही प्रतिस्पर्धा भी. जितनी जल्दी शोहरत मिलती है, उतना ही कठिन उस शोहरत को अपने पास बनाए रखना होता है. तुम्हें लगता है कि रूहानी इतनी कठिन जिंदगी जी पाएगी? और नोएडा यहां रखा है क्या? कितनी दूर है हमारे शहर से. वहां अकेली कैसे रहेगी वह?’’ पिता अब भी राजी न थे. लेकिन वयस्क बेटी की जिद के आगे कब तक टिक पाते?

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