विधि आयोग ने सरकार से कहा है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई को सूचना का अधिकार कानून के तहत लाना चाहिए. यह अच्छी बात है पर सरकार इसे मानेगी, ऐसा लगता नहीं क्योंकि अब तक किसी सरकार ने शायद ही बीसीसीआई पर ऐसा कोई कदम उठाया हो.

बीसीसीआई हमेशा से राजनेताओं और उद्योगपतियों की जागीर रही है. इन लोगों ने बीसीसीआई को कमाऊ संस्था बना कर रखा हुआ है. लोढ़ा समिति की सिफारिशों पर सुप्रीम कोर्ट को सख्त रवैया अपनाना पड़ा था.

सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2016 में आयोग से इस बारे में सिफारिश करने के लिए कहा था कि क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को आरटीआई के तहत लाया जा सकता है या नहीं? वैसे, बीसीसीआई को आरटीआई के तहत लाने की मांग लंबे समय से हो रही है. अब विधि आयोग ने कहा है कि बीसीसीआई को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत किसी भी संस्था के सरकारी संस्था होने के लिए जो मानदंड निर्धारित हैं, बीसीसीआई उन पर पूरी तरह से खरा उतरता है. आयोग ने कहा है कि बीसीसीआई सार्वजनिक प्राधिकरण के तहत काम करता है जिसे सरकार से वित्तीय मदद मिलती है.

लोढ़ा समिति ने सब से ज्यादा जोर बोर्ड की चुनाव प्रक्रिया में सुधार और पारदर्शिता पर दिया था, पर लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने में कुंडली मार कर बैठे लोगों को नानी याद आ गई. खूब दांवपेंच लगाए गए, गुटबाजी की गई पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रवैए के कारण ये लोग तिलमिलाए हुए हैं.

अब विधि आयोग की सिफारिश से इन लोगों की नींद उड़ी हुई है कि यदि बीसीसीआई आरटीआई एक्ट के दायरे में आ जाता है तो सब नंगे हो जाएंगे. कोई भी कभी भी आरटीआई एक्ट के तहत सूचना मांग सकता है और बीसीसीआई को इस का जवाब देना होगा.

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