सुना है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बचपन में चाय बेचा करते थे और आज वे देश संभाल रहे हैं. पर अगर कोई मुक्केबाज अपनी गरीबी के चलते भरी जवानी में चाय बेचने या पिता के कर्ज और बुरे हालात के चलते कुल्फी बेचने पर मजबूर हो जाए तो इस में किसे कुसूरवार माना जाएगा?

सब से पहले उस 'अर्जुन अवार्ड' विजेता मुक्केबाज की बात करते हैं जिन्होंने कभी मुक्केबाजी में भारत का नाम ऊंचा किया था और आज वे ठेले पर कुल्फी बेचने को मजबूर हैं.

हरियाणा के भिवानी के मुक्केबाज दिनेश कुमार ने अपने कैरियर में इंटरनैशनल और नैशनल लेवल पर 17 गोल्ड, 1 सिल्वर और 5 ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं. इन उपलब्धियों के लिए उन्हें 'अर्जुन अवॉर्ड' भी मिल चुका है.

लेकिन आज हालात इतने बुरे हैं कि दिनेश कुमार अपना घर चलाने और पिता के सिर से कर्ज का बोझ उतारने के लिए पिता के साथ कुल्फी बेचने को मजबूर हैं.

दरअसल, 30 साल के दिनेश कुमार कुछ साल पहले एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए थे. उन के इलाज के लिए पिता को लोन लेना पड़ा था. इतना ही नहीं, इस चोट के बाद दिनेश के मुक्केबाजी कैरियर का भी अंत हो गया. वैसे, इस कर्ज से पहले उन के पिता ने अपने बेटे की मुक्केबाजी की ट्रेनिंग के लिए भी कर्ज लिया था.

दिनेश कुमार ने कई बार सरकार से गुहार लगाई है कि उन्हें कोई नौकरी मिल जाए, ताकि वे अपने परिवार का पेट पाल सकें पर अभी तक उन की कोई मदद की गई है. जब कहीं से कोई आस नहीं बंधी तो दिनेश कुमार को पिता के साथ कुल्फी बेचने पर मजबूर होना पड़ा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...